जीवन की आपाधापी में मन अस्थिर हो जाता है निर्णय करने का बोध नहीं
रहता कि आखिर क्या चाहिए | सच्चाई ये है कई चाहतो के सिलसिले ने ही इसे अस्थिर
किया है चाहतो का न होना भी मनुष्य की प्रगति को रोक देता है लेकिन सीमा से अधिक
होने ये मनुष्य को अस्थिर कर देती है
"कभी -कभी सोचता हूँ की दूर किसी ऊँची पहाड़ी के सबसे ऊँचे
कोने पे खड़ा हो जाऊ और बहां से गुजरने बाले ठंडी हवा के झोको का इंतजार करू और जब
वो बहां से गुजरे तो उनसे पूछु की तुम इतने सुकून के ठन्डे झोके लाते कहाँ से हो |
क्या तुम जहाँ से आते हो बहां कोई दुःख नहीं , कोई हबस नहीं , कुछ पाने की
चाहत नहीं | शायद तुम्हारे यहाँ अपने लिए कुछ करने की चाहत न होगी लोगो में |
इन सवालों के जवाव ढूढ़ते -ढूढ़ते उवासी भरा दिन यूँ ही गुजर गया | मैं
खामोश रात के नींद से भरे हुए सपनो में खो गया अचानक मैंने अपने आप को उस पहाड़ी पे पाया जिसकी मुझे सुबह
तलाश थी मैं बड़ी खुशी से ठंडी हवा के झोको के इंतजार में बैठ गया | तभी इक पहाड़ी
शिकायत भरे लहजे में मुझसे बोली तुम यहाँ क्यूँ आये हो ? मैंने बड़े हक़ के साथ कहा मैं
यहाँ किसी से मिलने आया हूँ ! मैं सुकून से मिलने आया हूँ उसने कहा तुम हो कौन ? मैंने
कहा मैं इन्सान हूँ पहाड़ी गुस्से से लाल
हो गई उसकी सुन्दरता की हरियाली जेसे बदसूरती में बदल गई | मैं घबरा गया !
मैंने कहा मैं इन्सान हूँ प्रकृति का पुत्र और तुम उसकी पुत्री हो
हमारा रिश्ता तो भाई -बहन का है फिर तुम मुझसे इतनी नाराज क्यूँ हो | पहाड़ी नाराज
हो कर वोली तुम इंसानों ने इस रिश्ते को निभाया ही कहा है तुमने अपनी चाहतो की हवस
में हमारे बदन से हरियाली को नोच कर अपनी कंक्रीटों के महल बनाए हैं जाओ मेरा और
तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है और इतना कहते हुए उसने मुझे अपने आप से झिटक दिया | मैं
उस पहाड़ी से निचे गिरने लगा !
तभी अचानक मैंने अपने आप
को हवा में तैरता महसूस किया | इस हवा में इक ठंडा सा एहसास था
मुझे लग गया कि जिसकी मुझे तलाश थी वो आ गया है मैंने जोर से आवाज लगाई ऐ ठंडी हवा के झोको क्या तुम
सच मुच आगये हो | तभी इक आवाज आयी हाँ हम आगये ! मैं खुशी से झूम उठा ! मेरा मन
स्थिर हो गया | मैंने उनसे गुजारिश की अब मैं
आपके साथ ही रहूँगा ! मुझे अपने साथ ले चलो !
फिर अचानक मैंने तपिश को
महसूस किया ! ठंडी हवा के झोके जोर- जोर से हाफ्ने लगे | मुझसे बोले तू है कौन ? मैंने
कहा मैं इन्सान हूँ ! इतना सुनते उन्होंने
मुझे अपने आप से अलग कर लिया और मैं नीचे गिरने लगा !!
गिरते हुए मैंने देखा की मैं
इक आग के गोले पर गिर रहा हूँ और उस गोले पे खड़े मेरे अपने इन्सान आग उगलती हुई
हंसी हस रहे हैं तभी धक् से मेरी आंख खुली मैं पसीने से लथ-पथ घबराया हुआ बदहवास
सा भागा- भागा माँ के आंचल में छुप गया माँ ने मेरे माथे अपना हाथ रखा और मैंने सुकून का इक ठंडा झोका महसूस किया .....
बस इतनी सी थी ये कहानी
(निशान्त यादव )