Thursday 16 August 2018

ठन गई मौत से ठन गई./ भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी


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ठन गई
मौत से ठन गई.
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई

Monday 9 October 2017

काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते /इन्दिरा वर्मा



काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते
चाँद से लोग मिरा चाँद सजाने आते
रक़्स करती हुई फिर बाद-ए-बहाराँ आती
फूल ले कर वो मुझे ख़ुद ही बुलाने आते
उन की तहरीर में अल्फ़ाज़ वही सब होते
यूँ भी होता कि कभी ख़त भी पुराने आते
उन के हाथों में कभी प्यार का परचम होता
मेरे रूठे हुए जज़्बात मनाने आते
बारिशों में वो धनक ऐसी निकलती अब के
जिस से मौसम में वही रंग सुहाने आते
वो बहारों का समाँ और वो गुल-पोश चमन
ऐसे माहौल में वो दिल ही दुखाने आते
हर तरफ़ देख रहे हैं मिरे हम-उम्र ख़याल
राह तकती हुई आँखों को सुलाने आते

इन्दिरा वर्मा  

Saturday 19 August 2017

मैं कई रातों से सोया नहीं हूँ






मैं कई रातों से सोया नहीं हूँ
गम-ए-उल्फत में हूँ मगर रोया नहीं हूँ
रोज उठता हूँ चलता हूँ मंजिल की तरफ 
मेरा थोड़ा थक गया हूँ मगर हारा नहीं हूँ
राह तकता हूँ तुम्हारे आने की फिक्र में
लो रुक गया हूँ तुम्हारे आने की फिक्र में 

निशान्त

Tuesday 15 August 2017

आजादी का ये सत्तरवां साल


यूँ तो हमारे मुल्क की पैदाइश हजारों साल पुरानी है धार्मिक , सांस्कृतिक और आर्थिक तौर पर हम साझी विरासत के मालिक हैं रियासतों, रजबाड़ों, सल्तनतों में बँटा हुआ ये मुल्क 15 अगस्त 1947 में आजादी की एक लम्बी लड़ाई और त्रासद बंटबारे के बाद एक झंडे की नीचे एकजुट हुआ, हमने 26 जनवरी 1950 में अपना सविंधान बना खुद को एक लोकतांत्रिक , धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में स्थापित किया, हम इतनी भाषाओं, बोलिओं, धर्मों , पंथों के बाबजूद एक झंडे के तले एकजुट होकर इस मुल्क को हरदिन प्रगतिशील बनाने के प्रयास में सतत भागीदारी निभा रहे हैं इतनी बेहतर संबैधानिक व्यवस्था के बाबजूद आज भी कई मुद्दे ऐसे हैं जिनका समाधान बाकी है
एक बेहतर मुल्क़ उसके नागरिकों की प्रगति से ही बनता है देश मे आज भी सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ जिंदा हैं इन्हीं विषमताओं के आधार पर अधिकारों के हनन भी बदस्तूर हैं वैसे तो हर दिन हमें इस बात विचार करना चाहिए , लेकिन आज का दिन ऐसा जिस दिन हम सब एक साथ इस पर्व को मानतें हैं तो एकसाथ मुल्क की बेहतरी के लिए विचार भी करें , मुल्क के संसाधनों पर सिर्फ शक्तिशाली का अधिकार न हो, सबको समान न्याय व्यवस्था मिले , इन सब के लिये एक नागरिक के तौर पर हम सब को सजग रहना होगा, शोषित और अन्यायकारी व्यवस्था और शक्तियों को एक दिन खत्म ही होना है ये उदहारण हम अपनी आजादी से लेकर और मुल्कों में हुई आजादी की क्रांतियों से ले सकते हैं
अंतत आजाद रहिये, दूसरे की आजादी के लिए भी लड़िये,
आजादी का ये सत्तरवां साल सबको मुबारक !
जय हिंद !

Thursday 13 July 2017

एक पुराने दुःख ने पूछा /शिशुपालसिंह 'निर्धन'

एक गजब का गीत पढ़िए, मुझे बहुत पसंद आया , खुर्जा, बुलंदशहर से ताल्लुक रखने वाले कवि स्व: शिशुपालसिंह 'निर्धन' द्वारा रचा गया है 

एक पुराने दुःख ने पूछा 
क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना 
मैंने वो घर बदल दिया है 
जग ने मेरे सुख-पन्छी के 
पाँखों में पत्थर बांधे हैं 
मेरी विपदाओं ने अपने 
पैरों मे पायल साधे हैं 
एक वेदना मुझसे बोली 
मैंने अपनी आँख न खोली 
उत्तर दिया,चली मत आना 
मैंने वोह उर बदल दिया है 
एक पुराने ...
वैरागिन बन जाएँ वासना 
बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की 
हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा 
मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे
मैंने वोह सर बदल दिया है 
एक पुराने ...
मन की पावनता पर बैठी 
है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से 
कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ 
मेरे साथ आज कुछ गाओ 
उत्तर दिया,मौन हो जाओ 
मैंने वोह स्वर बदल दिया है 
एक पुराने ...

-शिशुपालसिंह 'निर्धन'

Tuesday 13 June 2017

ख़ामख़ा कोई यूँ ही नहीं मिलता है




ख़ामख़ा कोई यूँ ही नहीं मिलता है
जिंदगी का सफर यूँ तन्हा नही कटता है

मैं तमाम किस्से कैद किये बैठा हूँ
ये स्याह रातें एक पल में नही कटती

तुम बेहतर हो जमाने से बेफिक्र
मैं ही तमाम फ़िक्र लिए बैठा हूँ

-निशान्त