नयी बारिश पुरानी यादों को धो देती हैं
जैसे पीपल के पत्ते पे जमी मिटटी को धो देती हैं
जैसे पीपल के पत्ते पे जमी मिटटी को धो देती हैं
तेरी यादें अब भी कही कोने में छिपी हैं
ये फिर से रो देती हैं
कल कुछ बूँदें आई थी इन्हे बहाने को
मगर ये दरवाजे लगा के बैठी हैं
मगर ये दरवाजे लगा के बैठी हैं
अबके सावन का इंतजार है इनको
मौसमो पे बड़ा एतवार है इनको
अबके सावन भी कुछ नाराज है
फागुन की तवियत भी कुछ नासाज है
फागुन की तवियत भी कुछ नासाज है
में जव भी कुछ यूँ लिखता हूँ
जमाना कहता है कि कोई याद बाकि है
ऐ ज़माने भला याद कहा जाती है
जमाना कहता है कि कोई याद बाकि है
ऐ ज़माने भला याद कहा जाती है
(निशांत यादव )
waah kya baat hai ... bahut khoob ...
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