वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता जा रहा है मनुष्य हूँ तो सब कुछ जल्दी से कैद कर लेने और अपना बना लेने की चाह हमेशा मुझे परेशान करती रहती है इसी चाह की बदौलत मैं समय को कैद लेना चाहता हूँ वक्त गुजरे ! लेकिन मेरे हिसाव से , ये सच है ये कोरी कल्पना है | जव कभी वर्तमान और अपने बचपन की तस्वीर देखता हूँ जिनमे मैं छोटा सा किसी पेड की पत्ती पकडे खड़ा हूँ या फिर कहीं अपने माता पिता , भाई , बहन की गोद में बैठा हूँ ये सारी तस्वीरें मुझे बार-बार वक्त के वायु के वेग से चलने की सूचना देती रहती है जब अपने जन्म की तारीख देखता हूँ और उसे आज से घटा कर देखता हूँ तो कुछ जिंदगी के अठाईस वसंत निकलते है ये उम्र कोई ज्यादा तो नहीं लेकिन आज की भागती जिंदगी में ये मुझे काफी लगती है बहुत कुछ है जो अब तक कर लेना चाहिए था , ये करना है वो करना है उसने ऐसा कर लिया , ये सब कहानी है रोज की .. ये सब विचार या कहूँ विकार चित्त में बैचेनी पैदा करते है लेकिन इन सब से निजात पाने की दवाई होती है स्वयं से प्रेरणा , क्या हुआ जो नहीं हुआ अब हो जायेगा , और नहीं होगा तो जो है बही ठीक है इस लिए वक्त को कैद करने की सोचना भी मत ये चित्त को बैचेनी ही देता है इस लिए खुद से या किसी और प्रेरणा लेते रहिये , स्वयं को शांत और सुखी रखने या यही एक मात्र रास्ता है !
Friday, 7 August 2015
Sand Falling From Hand Like Time - (मुट्ठी में फिसलता रेत )
वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता जा रहा है मनुष्य हूँ तो सब कुछ जल्दी से कैद कर लेने और अपना बना लेने की चाह हमेशा मुझे परेशान करती रहती है इसी चाह की बदौलत मैं समय को कैद लेना चाहता हूँ वक्त गुजरे ! लेकिन मेरे हिसाव से , ये सच है ये कोरी कल्पना है | जव कभी वर्तमान और अपने बचपन की तस्वीर देखता हूँ जिनमे मैं छोटा सा किसी पेड की पत्ती पकडे खड़ा हूँ या फिर कहीं अपने माता पिता , भाई , बहन की गोद में बैठा हूँ ये सारी तस्वीरें मुझे बार-बार वक्त के वायु के वेग से चलने की सूचना देती रहती है जब अपने जन्म की तारीख देखता हूँ और उसे आज से घटा कर देखता हूँ तो कुछ जिंदगी के अठाईस वसंत निकलते है ये उम्र कोई ज्यादा तो नहीं लेकिन आज की भागती जिंदगी में ये मुझे काफी लगती है बहुत कुछ है जो अब तक कर लेना चाहिए था , ये करना है वो करना है उसने ऐसा कर लिया , ये सब कहानी है रोज की .. ये सब विचार या कहूँ विकार चित्त में बैचेनी पैदा करते है लेकिन इन सब से निजात पाने की दवाई होती है स्वयं से प्रेरणा , क्या हुआ जो नहीं हुआ अब हो जायेगा , और नहीं होगा तो जो है बही ठीक है इस लिए वक्त को कैद करने की सोचना भी मत ये चित्त को बैचेनी ही देता है इस लिए खुद से या किसी और प्रेरणा लेते रहिये , स्वयं को शांत और सुखी रखने या यही एक मात्र रास्ता है !
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