Friday, 9 May 2014

तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे,जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था

कोई शिकायत थी तो बताया होता , कोई शिकवा था तो कहा होता                        
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था ,  
                                    
कोई ख़ुशी थी तो बताई होती , कोई दुःख था तो बांटा होता 
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था ,

में इंतजार करता रहा तुम्हारे मुड़ने का , काश तुम भी मुड़े होते ,
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था ,

में जव भी अकेला होता तुम्हारी यादें मुझसे मिलने चली आती , 
काश तुम भी उनसे मिले होते ,
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था ,

बिताये साथ पल जो हम तुम ने सहेज कर रखे है मेने , काश तुमने भी उन्हें सहेज कर रखा होता ,
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था ,

शब्द बहुत है पर अब लिखूंगा नहीं मैं , काश तुमने इन शब्दों को समझा होता
तुमने हाथ कुछ ऐसे छुड़या मुझसे , जैसे तुमसे कोई रिश्ता ही न था

अब कभी लौट कर देखोगे तो दिखूँगा नहीं में , दर्द ऐ मुह्हबत को सहूँगा नहीं में ,
ये अंतिम बधाई तुम्हारे लिए है अब इसे कभी कहूँगा नहीं में
(निशांत यादव)





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