Tuesday, 31 March 2015

ये बेमौसम बरसात कितनी भयानक है



ये बेमौसम बरसात कितनी भयानक है 
गरजते बादल दानव जैसे हैं काले , घनघोर डरावने
मै अपनी लहलहाती फसल को देख कर कितना खुश था
बिजली सी लपलपाती तलवार से इसने
मेरी फसल और मेरे अरमानो का वध किया है
बाढ़ के रेलों ने मेरे घरो को उजाड़ दिया है
झेलम ,चिनाव , गंगा , कोसी सब इनके साथ हो ली हैं
मैं अकेला खड़ा हूँ निशस्त्र , असहाय लुटा सा
हे ! ईश्वर मेरी बर्बाद फसल , उजड़े घर के तरफ देखो
जवाव दो ! क्या ये दानव तुमने भेजा है
क्या बिजली सी लपलपाती तलवार तुम्हारे म्यान की है
जवाव दो ! निरुत्तर क्यों हर बार  की तरह
हे ! ईश्वर बादलो से कहो ये लौट जाएं
झेलम से कहो ये अपने प्रवाह को कम कर ले
और यदि ये तुम्हारी चुनौती है
तो मुझे स्वीकार है
मैं धरती का पुत्र हूँ हिमालय सा मेरा साहस है
मैं हर बार गिर के उठा हूँ
मैं फिर से उठ जाऊंगा
ये फसल फिर से उगेगी ,
यदि कभी धरती पर आओ
तो मेरा जवाव लाना
क्या ये दानव तुमने भेजा है

..निशान्त यादव....

Wednesday, 25 March 2015

मुझसे चांद कहा करता है | हरिवंशराय बच्चन

मुझसे चाँद कहा करता है--                                                          
चोट कड़ी है काल प्रबल की,
उसकी मुस्कानों से हल्की,
राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|

मुझसे चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--

तू अपने दुख में चिल्लाता,
आँखो देखी बात बताता,
तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है।
मुझसे चाँद कहा करता है--
                                                                             

                                                               .....हरिवंशराय बच्चन

Wednesday, 18 March 2015

ये पेड मुझे रोज छाँव देता है !

ये पेड मुझे रोज छाँव देता है !
बिना कुछ मूल्य लिए... निस्वार्थ !
ये उम्र में मुझसे छोटा है !
लेकिन मेरी सांसो को यही ढोता है !
दिन रात बिना थके !
मैं इससे रोज पूछता हूँ !
तुम्हारी उम्र क्या है !
किन्तु ये मौन है !
किसी महात्मा की तरह !                                                                                      
मैंने इसकी देह पर !
झूले की रस्सी के निशां देखे है !
ये बर्षो पुराने हैं !
अब इसकी डालिओं पर  झूले नहीं पड़ते !
जब तब कुल्हाड़ी ही चलती है !
हमारी जरूरतों की .....


....निशान्त यादव








Saturday, 14 March 2015

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ /हरिवंश राय बच्चन

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!
मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;
जग भ्‍ाव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!
मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ,
उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!
कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ! "

........ हरिवंश राय बच्चन 

Thursday, 12 March 2015

किसान की पीड़ा




मैं भारत का किसान हूँ
मेरी पीड़ाएँ अनंत है
अन्नदाता हूँ देवता समान 
दाता किन्तु खुद निर्धन 

इन बेमौसम बारिश और हवाओं में 
लोग पकोड़े तलते आहा वाहा करते है 
लेकिन तुमसे दूर कहीं 
किसानो के घर  चूल्हे नहीं जलते है 

इन काली निरीह रातो में 
बारिश से लिपटे हवा के झोको से 
हर पल होते वज्र घात 
खेतों में गिरी फसल
खत्म हुए गेहूं के दाने 
बिखरे सपने आने से पहले 

हर वर्ष ठगा गया हूँ में 
संसद  में बैठे झूठे पेरेकारो से 
अब फिर से पटवारी आएगा 
एक नया सर्वे करवाएगा 
हर वर्ष की तरह ...
बर्बादी को सरकारी  तराजू पर तोलेगा 
वर्षो बाद सरकारी सिक्के आएंगे 
भरे घाव फिर से कुरेद जायेंगे ........ 

                                                                                .......निशान्त यादव 







Wednesday, 11 March 2015

जितना कम सामान रहेगा / गोपालदास "नीरज"

श्री गोपाल दास नीरज के संग्रह " बादलो से सलाम लेता हूँ " से 

जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा

जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा

उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा

हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा

जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा

‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा


Tuesday, 10 March 2015

मैं होली के कुछ रंग छोड़ आया हूँ



मैं होली के कुछ रंग छोड़ आया हूँ !
कहीं ख़ुशी तो कहीं गम छोड़ आया हूँ !
कुछ चेहरे सुर्ख तो कुछ बेरंग छोड़ आया हूँ !
कहीं गलियां सुनी तो कहीं उनमे  टोली छोड़ आया हूँ !

                   जिन रास्तों को इंतजार रहता है  मेरा !
                   मैं उन्हें अब छोड़ आया हूँ !
                   लौट कर आऊंगा फिर से  कुछ नए रंग लेकर !
                   कुछ सुर्ख लाल तो कुछ गुलावी लेकर !
                   फिर से दौडूंगा उन गलिओं में रंग लेकर !
                   फिर से देखूंगा तुम्हे किसी की ओट लेकर !

                                     बेसब्री बेचैन हो उठती है !
                                     गुजरे वक्त के ख्वाव देख कर !
                                     माँ फिर से पुकारेगी गुझिया में प्यार भरके !
                                     माँ फिर से खड़ी होगी मेरी ढाल बनके !
                                    तेरी थपकी का एहसास अभी बाकी है !
                                    माँ अब मुझे तेरी याद बहुत आती है !



                                                                              .............निशान्त यादव








Friday, 6 March 2015

मेरा हर दिन होली रे ....


प्रेम रंग छूटे न छुटे ,
मेरा हर दिन होली रे ....

तुम  राधा , में श्याम रे
रंग हरा न डालो राधे
प्रेम का  रंग गुलावी रे

अबके बरस तुम दूर हो राधे
तुम बिन होली बिरहन लागे
रंग लगे मोहे बैरी से

करो तुम वादा अगले बरस का
राधे तुम बिन हर होली सुनी रे

प्रेम रंग छूटे न छुटे ,
मेरा हर दिन होली रे ....

Monday, 2 March 2015

अँधेरा छंट जायेगा

रुको !  डरते क्यों हूँ इस अँधेरे से
ये तो छंट  जायेगा
नयी सुबह का हिम्मत से इंतजार करो
अंतर्मन के अँधेरे से लड़ो
देखो हर तरफ उजाला है
रात का अँधेरा तो क्षणिक है
हर रात के बाद नयी सुबह जो है
चमकते जुगनुओं को देखो
दिन के उजाले को समेटकर
अँधेरे को आइना दिखाता है वो
अँधेरे और उजाले का सफर अनवरत है
उत्साह के बाद निराशा का होना सार्थक है
जैसे असफलता के बाद सफलता का होना
ये लड़ाई अनवरत है !
कृत्रिम और मन के अंधरे से !!!

-निशांत यादव