Thursday, 12 March 2015

किसान की पीड़ा




मैं भारत का किसान हूँ
मेरी पीड़ाएँ अनंत है
अन्नदाता हूँ देवता समान 
दाता किन्तु खुद निर्धन 

इन बेमौसम बारिश और हवाओं में 
लोग पकोड़े तलते आहा वाहा करते है 
लेकिन तुमसे दूर कहीं 
किसानो के घर  चूल्हे नहीं जलते है 

इन काली निरीह रातो में 
बारिश से लिपटे हवा के झोको से 
हर पल होते वज्र घात 
खेतों में गिरी फसल
खत्म हुए गेहूं के दाने 
बिखरे सपने आने से पहले 

हर वर्ष ठगा गया हूँ में 
संसद  में बैठे झूठे पेरेकारो से 
अब फिर से पटवारी आएगा 
एक नया सर्वे करवाएगा 
हर वर्ष की तरह ...
बर्बादी को सरकारी  तराजू पर तोलेगा 
वर्षो बाद सरकारी सिक्के आएंगे 
भरे घाव फिर से कुरेद जायेंगे ........ 

                                                                                .......निशान्त यादव 







1 comment:

  1. मार्मिक ... किसान के दर्द को बाखूबी लिखा है ...

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