मैं भारत का किसान हूँ
मेरी पीड़ाएँ अनंत है
अन्नदाता हूँ देवता समान
दाता किन्तु खुद निर्धन
इन बेमौसम बारिश और हवाओं में
लोग पकोड़े तलते आहा वाहा करते है
लेकिन तुमसे दूर कहीं
किसानो के घर चूल्हे नहीं जलते है
इन काली निरीह रातो में
बारिश से लिपटे हवा के झोको से
हर पल होते वज्र घात
खेतों में गिरी फसल
खत्म हुए गेहूं के दाने
बिखरे सपने आने से पहले
हर वर्ष ठगा गया हूँ में
संसद में बैठे झूठे पेरेकारो से
अब फिर से पटवारी आएगा
एक नया सर्वे करवाएगा
हर वर्ष की तरह ...
बर्बादी को सरकारी तराजू पर तोलेगा
वर्षो बाद सरकारी सिक्के आएंगे
भरे घाव फिर से कुरेद जायेंगे ........
.......निशान्त यादव
मार्मिक ... किसान के दर्द को बाखूबी लिखा है ...
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