मैं होली के कुछ रंग छोड़ आया हूँ !
कहीं ख़ुशी तो कहीं गम छोड़ आया हूँ !
कुछ चेहरे सुर्ख तो कुछ बेरंग छोड़ आया हूँ !
कहीं गलियां सुनी तो कहीं उनमे टोली छोड़ आया हूँ !
जिन रास्तों को इंतजार रहता है मेरा !
मैं उन्हें अब छोड़ आया हूँ !
लौट कर आऊंगा फिर से कुछ नए रंग लेकर !
कुछ सुर्ख लाल तो कुछ गुलावी लेकर !
फिर से दौडूंगा उन गलिओं में रंग लेकर !
फिर से देखूंगा तुम्हे किसी की ओट लेकर !
बेसब्री बेचैन हो उठती है !
गुजरे वक्त के ख्वाव देख कर !
माँ फिर से पुकारेगी गुझिया में प्यार भरके !
माँ फिर से खड़ी होगी मेरी ढाल बनके !
तेरी थपकी का एहसास अभी बाकी है !
माँ अब मुझे तेरी याद बहुत आती है !
.............निशान्त यादव
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