Thursday, 13 July 2017

एक पुराने दुःख ने पूछा /शिशुपालसिंह 'निर्धन'

एक गजब का गीत पढ़िए, मुझे बहुत पसंद आया , खुर्जा, बुलंदशहर से ताल्लुक रखने वाले कवि स्व: शिशुपालसिंह 'निर्धन' द्वारा रचा गया है 

एक पुराने दुःख ने पूछा 
क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया,चले मत आना 
मैंने वो घर बदल दिया है 
जग ने मेरे सुख-पन्छी के 
पाँखों में पत्थर बांधे हैं 
मेरी विपदाओं ने अपने 
पैरों मे पायल साधे हैं 
एक वेदना मुझसे बोली 
मैंने अपनी आँख न खोली 
उत्तर दिया,चली मत आना 
मैंने वोह उर बदल दिया है 
एक पुराने ...
वैरागिन बन जाएँ वासना 
बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की 
हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा 
मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे
मैंने वोह सर बदल दिया है 
एक पुराने ...
मन की पावनता पर बैठी 
है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से 
कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ 
मेरे साथ आज कुछ गाओ 
उत्तर दिया,मौन हो जाओ 
मैंने वोह स्वर बदल दिया है 
एक पुराने ...

-शिशुपालसिंह 'निर्धन'

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