Thursday, 30 March 2017

माना की हम यार नहीं/Mana ki ham yar nahi /parinati chopra/lyrics


माना की हम यार नहीं
लो तय है के प्यार नहीं
फिर भी नज़रें ना तुम मिलाना
दिल का ऐतबार नहीं
माना के हम यार नहीं

रास्ते में जो मिलो तो
हाथ मिला ने रुक जाना
हो ओ.. साथ में कोई हो तुम्हारे
दूर से ही तुम मुस्काना
लेकिन मुस्कान हो ऐसी
के जिसमे इकरार नहीं
नज़रों से ना करना तुम बयां
वो जिसे इनकार नहीं
माना के हम यार नहीं

फूल जो बंद है पन्नो में तो
उसको  धूल बना देना
बात छिड़े जो मेरी कहीं
तुम उसको भूल बता देना
लेकिन वो भूल हो वैसी
जिसे बेजार नहीं

लेकिन वो भूल हो वैसी
जिसे बेजार नहीं
तू जो सोये तो मेरी तरह
एक पल भी करार नहीं
माना की हम यार नहीं



Sunday, 26 March 2017

मिटने का अधिकार! / महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा जिन्हें आधुनिक मीरा कहा जाता है आज उनका जन्म दिवस है उनका जन्म 26 मार्च सन् 1907 को (भारतीय संवत के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा संवत 1964 को) प्रात: ८ बजे फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ। इस परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद महादेवी जी के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था। अत: इनके बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी- महादेवी माना और उन्होंने इनका नाम महादेवी रखा था। 
महादेवी वर्मा के हृदय में शैशवावस्था से ही जीव मात्र के प्रति करुणा थी, दया थी। उन्हें ठण्डक में कूँ कूँ करते हुए पिल्लों का भी ध्यान रहता था। पशु-पक्षियों का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद में ही दिन बिताती थीं। चित्र बनाने का शौक भी उन्हें बचपन से ही था। इस शौक की पूर्ति वे पृथ्वी पर कोयले आदि से चित्र उकेर कर करती थीं। उनके व्यक्तित्व में जो पीडा, करुणा और वेदना है, विद्रोहीपन है, अहं है, दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता है

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं 
जिनको भाता है बुझ जाना! 

वे सूने से नयन,नहीं 
जिनमें बनते आँसू मोती, 
वह प्राणों की सेज,नही 
जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती! 

वे नीलम के मेघ, नहीं 
जिनको है घुल जाने की चाह 
वह अनन्त रितुराज,नहीं 
जिसने देखी जाने की राह! 

ऎसा तेरा लोक, वेदना 
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद, 
जलना जाना नहीं, नहीं 
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा 
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार!

Wednesday, 22 March 2017

माँ रिश्तों में पुल सी है


माँ रिश्तों में पुल सी है
माँ रिश्तों में पानी की धारा है
माँ रिश्तों में ठण्डी हवा का झोंका है
माँ जब तक है
भाई से भाई जुड़ा है
संतान पिता से जुडी है
भाई बहन से जुड़ा है
उसके होने से रिश्तों के दो किनारे हमेशा जुड़े हैं
जहाँ नहीं है
वहाँ रिश्तों की नदी सूखी है
दोनों किनारे एक दूसरे का मुँह ताकते है
ये कविता अधूरी है चाहता हूँ अधूरी ही रहे !

―निशान्त

Tuesday, 21 March 2017

सोशलिस्ट


इस बार चुनाव के दौरान जब धर्मिक और सामाजिक विद्वेष की बात आयी तब मित्रों की चर्चा में मैंने कहा कि इसका समाधान ही हमारे हित में है सबको एक चश्मे से न देखे , अगर कहीं चार दूषित व्यक्ति दिखें तो चार हजार को उसी दोष में न लपेटें , लेकिन इस सब के बात मुझपर ये तोहमत लगी हम जैसे लड़के जो गाँव कस्बो से दूर किसी शहर में पढ़ रहे हैं या कुछ काम -धाम लगें हैं वे सोशलिस्ट हो जाते हैं हकीकत पर बात नहीं करते , दरअसल उनके हिसाब से हकीकत ये है कि जो चार दोषी हैं उन्हें वो चार हजार  क़ौम और जात  , मुल्क और समाज से गद्दारी करने को कहती है ये सब सोचा समझा है इस लिए इसका इलाज बेदख़ली , जुल्म और बदनामी है, ये पढ़े नहीं , औलाद बहुत ज्यादा हैं , रंग से काले और गंदे है , स्त्री हैं रहने का सऊर नहीं, इस लिए ये जब जन्मजात ऐसे हैं तब इनसे सुरक्षित रहने का तरीका सिर्फ इनको दफन या कमज़र्फ बना देने है , हमने कहा ये पढ़ें, इन्हें बराबरी का मौका मिले , तो सुधार जरूर होगा, देखो जिन्हें मौका मिला वो भी तो बेहतर हुए, बस इसी सोच की तोहमत सोशलिस्ट होना है मैने तोहमत शब्द का इस्तेमाल इस लिए किया क्यों की वे इसे कोई अच्छी उपाधि नहीं मानते हैं उनके लिए अच्छे शब्द या उपाधि बफादार, देशभक्त , और अपनी जाति धर्म के हित  की सोच रखने वाला , ये शब्द आम समाज में अच्छे और बेहतर हैं बस ये आपको मिलेंगे तभी जब इसके उलट दूसरे का अहित भी करने का माद्दा रखते हों
एक सवाल ये भी है कि सोशलिस्ट कम्युनिस्ट, जैसे शब्द आम समाज की नजर में स्वीकार क्यों नहीं हैं सिर्फ नारों तक सीमित क्यों है इसका कारण है कि जो इनके पैरोकार थे उन्होंने इनका इस्तेमाल सत्ता पाने के लिए किया, बाद जब सत्ताधारी हुए तब वे भी उसी में घुल गए ,
बैसे तो समाज की बेहतरी के लिए न तो मैं कुछ कर रहा हूँ और न ही वे मेरे मित्र लेकिन हम इसके बाबजूद हिस्सा तो इसीका हैं क्या पता कोई हमें सुन कर , पढ़ कर, या हमारे द्वारा किये कार्यों को देख कर सीख रहा हो, वो कुछ नहीं तो मेरे परिवार का हो सकता हैं
इस लिए मैं ये जानते हुए कि नफरत और असमानता की खाई एक दिन हमें भी अपनी और खींच कर दफ़्न कर देगी , खुद को सोशलिस्ट ही बनाने में लगा हूँ आप जो रहना चाहें रहिये , लेकिन बस नफरत और असमानता की खाई को पाटने के लिए एक मुट्ठी मिट्टी अपनी तरफ से भी डालिये , ये हमारे आगे आने वाले समाज, मुल्क़ और क़ौम को जिंदा और खुशनुमा रखने के काम आएगी ......

Monday, 13 March 2017

ले भगवा रंग पिचकारी में मोदी घुस गये यूपी

इस होली पे थोड़ी राजनीतिक चुहल के साथ सबको होली मुबारक .. मजे लीजिये इन लाइनों का और साथ में होली का ...

ले भगवा रंग पिचकारी में
मोदी घुस गये यूपी
भइया लाए लाल हरा
बुआ ले आईं नीला
पब्लिक दे गई एसो गच्चा
बुआ -भतीजे रंग गए भगवे में
जोगीरा सा रा रा रा ।

पब्लिक यूपी की दे गई गच्चा
राजा बन गये मोदी चच्चा
अखिलेश से नाराज हैं चच्चा
फाड़ पज्जमा होरी खेलो
जोगीरा सा रा रा रा ।

#happyholi