माँ रिश्तों में पुल सी है
माँ रिश्तों में पानी की धारा है
माँ रिश्तों में ठण्डी हवा का झोंका है
माँ जब तक है
भाई से भाई जुड़ा है
संतान पिता से जुडी है
भाई बहन से जुड़ा है
उसके होने से रिश्तों के दो किनारे हमेशा जुड़े हैं
जहाँ नहीं है
वहाँ रिश्तों की नदी सूखी है
दोनों किनारे एक दूसरे का मुँह ताकते है
ये कविता अधूरी है चाहता हूँ अधूरी ही रहे !
―निशान्त
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