Friday, 24 February 2017

अरे ओ भोले भंडारी !



अरे ओ भोले भंडारी !
तुम्हारी माया है न्यारी !
लौंडे हुये जायें भंगारी !
लड़कियाँ माँगे पति संस्कारी !

धन्नासेठ चढ़ावें छत्तर !
निर्धन के पास बस पातर !
जहर दुनिया में भर आया !
कहाँ ढूढें तुमको कैलाशी !
अरे ओ भोले भंडारी !
तुम्हारी माया है न्यारी !

#महाशिव_रात्रि

Tuesday, 14 February 2017

हैप्पी happy valentine day



ये वेलेंटाइन डे उन सब के नाम जिन्होंने एकतरफा मोहब्बत की , न कभी कह पाये न कभी सुन पाये खुद का नाम उससे । जो प्यार में मुकाम पा गए वो शायद सुकून में हों । लेकिन जो कह ही नहीं पाये वो जिस बैचेनी में जिए वो ताउम्र साथ रहती है उम्र के किसी पड़ाव पर उसका चेहरा दिखा या सामना हुआ , हर बार बही पहले वाली धकधक महसूस की । ये ऐसी बैचेनी है जो हमेशा साथ रहती है ऐसी एकतरफा मोहब्बत में कोई उम्मीद नहीं होती कि वो कुछ हमारे लिए करें इसका मतलब ये नहीं कि इसमें सिर्फ नउम्मीद ही है इसलिए जब कोई उम्मीद नहीं तो उसके पूरा होने या टूटने का डर भी नहीं । हो सकता है एकतरफा मोहब्बत वालों को कोई लूजर कहे , हारा हुआ कहे । लेकिन एकतरफा मोहब्बत में जीना कोई आसान नहीं । एक कसक तो हमेशा साथ रहती है एक बैचेनी हमेशा साथ रहती है जो आपको हमेशा प्यार में डुबोये रहती है आँखे खुली हो या बंद ! वो हमेशा सिर्फ आँखों में ही रहते हैं और अगर सामना हो जाये तो फिर तो दिन बन जाता है राते बैचेन हो जाती है और सच में यही कसक और बैचेनी हमेशा प्यार में डुबोये रहती है दुनिया में कोई ऐसा नहीं जिसने किसी से एकतरफा प्यार न किया हो , इस लिए अगर आप भी किसी ऐसे दौर में हैं तो खुद को अभागा न समझिये , आपने जिंदगी की सबसे कठिन लम्हो को जिया है । जो मुकाम पा गए वो उलझ गए लेकिन आप हमेशा खुश रहे खुद में ! अपनी दुनिया में ! जहाँ आप हैं और सिर्फ आपके वेलेंटाइन !!

सबको ये मोहब्बत का दिन मुबारक !!!

पीयूष मिश्रा की कुछ लाइने इश्क़ के नाम

वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना दूर तहलका हो…

वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना बात बिगड़ती हो…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो आसानी से हो जाए…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना मौक़ा सिसकी का…

वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसकी दरकार इजाज़त हो…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो कहे ‘चूम और भग ले बे’…

वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो मजबूरी का मौक़ा हो…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें सब कुछ ही मीठा हो…


वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो सबकी सुन के होता हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो ना भीगा ना झीना हो…

वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो इक चुम्बन में थकता हो…



Friday, 10 February 2017

चुनाव में वोटों का असल आधार






उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव की तिथि अब बस एक दिन बाद है  पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ७२ सीटों पर
चुनाव होने वाले है । सभी पार्टियों ने अपने चुनाव प्रचार में खास तौर पर बड़े नेताओं के  भाषणों में विकास , कानूनव्यबस्था मुद्दा रहता है और रहा है , अब सवाल यही है कि क्या वास्तव में जनता के बीच इन मुद्दों का असर है जब पत्रकार माइक और कैमरा के सामने जनता से पूछते हैं तो जनता भी चतुर राजनेता की तरह इन्ही मुद्दों की बात करती है लेकिन हकीकत तो इससे परे है  मैं उत्तरप्रदेश के बारे में कह सकता हूँ कि चुनाव सिर्फ विकास और कानून व्यवस्था के मुद्दों पर नहीं लड़े जाते और न ही जनता इन मुद्दों के आधार पर वोट देती है पूरे प्रदेश में एक आम सहमति के तौर पर हमें लग सकता कि इस बार किसकी हवा है लेकिन जब आप प्रत्येक  विधानसभा स्तर पर आंकलन करें तो समीकरण अलग है लोकल स्तर पर चुनाव लड़ने दो ही मुख्य आधार है एक जाति और धर्म के आधारपर गोलबंदी और दूसरा कि उस विधायक ने पाँच साल ,जनता को थाने , तहसील और जिले के प्रशासन के जरिये कितना ठगा या नहीं ठगा । उत्तर प्रदेश के कई विधानसभा इलाको में  मोहल्ले और गाँव  स्तर पर नेता होतें है जो विधायक , जनता और प्रशासन के बीच कैरियर का काम करते हैं थानों ,तहसीलों , सरकारी दफ्तरों में जनता को बिना मिठाई दिए घुसने का मौका नहीं मिलता , आप थाने में जाइये आपकी रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी फिर अपने मौहल्ले नेता से मिलिए वो विधायक जी से बात करेगा , आपके साथ होने दावा करेगा थाने में आपको  दरोगा जी का भय दिखायेगा और मेज के नीचे से आपकी जेब ढीली होगी , दरअसल दिक्कत यही है ये मौहल्ले और गावँ स्तर के कहने से ही  कम पढ़ी लिखी जनता वोट भी पर देती है इस चुनाव के दौरान मैं कई ऐसे लोगो से मिला जिनका यही कहना होता है कि हम तो फलां भाई के कहने पर वोट देंगे जहाँ वो जायेंगे वहीँ हम . अब जब हमने अपनी हक़ की लड़ाई के लिए ऐसे  ठेकेदार चुने हैँ तब किसी न्याय की उम्मीद करना बेमानी ही है

दूसरा आधार है जाति और धर्म क़ी गोलबंदी , आप लोकल स्तर पर बात कीजिये लोग यही कहते हुए मिलेंगे क़ी हम तो अपने जाति के भाई या धर्म वाले को वोट देंगे , तो सवाल यही कि जब जनता और नेता चुनाव में इन्ही आधारों पर वोट देते तब ये विकास का ढकोसला क्यूँ है और दूसरा ये कि इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है इसकी जिम्मेदारी नेताओं पर तो है ही साथ हम आम लोगो क़ी भी है हमारा नेताओं और अधिकारियों के प्रति नजरिया क्या है क्या हम उनकी प्रति हुजूरी का भाव रखते हैँ हाँ हम ऐसा ही भाव रखते हैँ जबकि भारत के लोकतान्त्रिक ढांचे में कतई स्वीकार नहीं है हम नेताओं से सवाल नहीं करते , हम उनसे नहीं पूछते कि आपने जो वादे किये उनका क्या हुआ , हम उनसे नहीं पूछते कि आप लोकतंत्र क़ी प्रक्रियाओं का पालन क्यूँ  नहीं करते , और यही कारण है कि हमारा हर स्तर पर शोषण होता है प्राइमरी शिक्षा , गाँव का विकास सबका बुरा हाल है चुनाव के समय नेता आता है हम उसके जयकारे लगाते हैँ मालाएं पहनाते हैँ और जाति -धर्म के हिसाब से वोट दे आते हैँ और अगर हम में से कोई उस सब का विरोध करना चाहे , सवाल पूछना चाहे तो खुद ही उसको दोषी ठहरा कर नेताओं को आसान सा रास्ता दे देते हैँ गौर से देखिये हम चुनावों में नारे भी वही लगाते तो पार्टियां तय करती है जब तक हमारे नारों में जिन्दावाद और जय जयकार रहेगा हम ऐसे ठगे जातें रहेंगे , हमें चटुकारिता और सामंती नारों क़ी नहीं नेताओं से सवाल करने क़ी जरूरत है जिस दिन ये हो जायेगा हम इस पवित्र लोकतंत्र क़ी आत्मा के साथ  न्याय कर पाएंगे , सबको सबका हक़ उसी दिन मिलेगा जब जिंदावाद के नारों क़ी जगह सवाल होंगे ...

Thursday, 9 February 2017

#असफलता_के_दिन





असफलता और निराशा से घिरे कठिन दिनों में कई बार अपनी योग्यता एवं अर्जित ज्ञान पर शक होने लगता है । कई बार ये भी लगता है ये जो रास्ता हमने पकड़ा है क्या ये सही है ? क्या ये रास्ता ऐसा है जो हरबार इस भ्र्म में डालता रहेगा की आप गलत दिशा में हैं जवकि इसे आपने खुद चुना है या परिस्थितिवश । ऐसे में व्यक्ति का खुद को प्रोत्साहित करना बहुत काम आता है हालांकि ऐसे दिनों में आत्म विश्वाश की घोर कमी हो जाती है । दरअसल यही जीवन की सीख है जो अगर टिके रहो तो मजबूत बनाती है हमें ख़ुद को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए । बात बनेगी ! अंधेरा छटेगा ! रास्ता मिलेगा! ये न सही कुछ और होगा ! चलते रहे तो कहीं उजाले में पहुँच ही जायेंगे ! ये सब खुद से कहते रहो , जो रास्ता बंद हुआ उसके बाद नया ढूढने की कोशिश , बस इसी सब में कट जायेगी जिंदगानी , फिर बाद में एक दिन बैठो और सोचो कि मैं कितना लड़ा लेकिन हारा नहीं , थका, लेकिन रुका नहीं , आप देखिये ख़ुद को कितना सुकून और अगले पड़ाव की तरफ बढ़ने का साहस मिलता है ....