Sunday, 26 June 2016

हर बार भुलाने की कोशिश में फिर याद तुम्हे कर लेता हूँ




हर बार भुलाने की कोशिश में फिर याद तुम्हे कर लेता हूँ
ये जख्म अभी भी गहरा है फिर बीते लम्हों को जी लेता हूँ

हर जाने वाले झोंके से फिर हाल वही कह देता हूँ
लहरों से छूटी मिटटी पर फिर नाम वही लिख देता हूँ

अब यार मेरे मुझको दीवाना पागल कहते हैं
मुँह पर उनके हँस देता हूँ मुड़कर थोड़ा रो लेता हूँ

हर भोर में आये सपने को सबसे यूँ कहता फिरता हूँ
सच हो जाये हर सपना बस इस गफलत जीता हूँ

जब बैचेनी बढ़ जाती है यूँ ही कुछ लिख लेता हूँ
शब्दों के इस संगम में थोड़ी ठंडक भर लेता हूँ



.....निशान्त

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