Tuesday, 21 June 2016

छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक। /नरेश शांडिल्य

छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक।
सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख।।

देखा तेरे शहर को, भीड़ भीड़ ही भीड़।
तिनके ही तिनके मिले, मिला न कोई नीड़।।
मैंने देखा देश का, बड़ा सियासतदान।
न चेहरे पर आँख थी, न चेहरे पर कान।।
मैं खुश हूँ औज़ार बन, तू ही बन हथियार।
वक्त करेगा फ़ैसला, कोन हुआ बेकार।।
तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच।
तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच।।
लौ से लौ को जोड़कर, लौ को बना मशाल।
क्या होता है देख फिर, अंधियारों का हाल।।
----नरेश शांडिल्य

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