Thursday, 2 June 2016

एक अरसा गुजर गया तुमसे दूर हुए



एक अरसा गुजर गया तुमसे दूर हुए
तुम्हे न पाने की हताशा जब तब मुझे घेर लेती है
मन इस हताशा से दूर भागता हुआ
तुम्हारे साथ गुजारे लम्हों से मिलने पहुँच जाता है
और उंगलिया उन लम्हों को कागज पर लिखने लगती है
मुझे देखती तुम्हारी आँखों में मेरा चेहरा
प्रेम पत्रों में मुझे प्रिय का सम्बोधन
छुप-छुप कर मिलना
उन मुलाकातों में तुम्हारे दिए
वो कुछ दिन पुराने प्रेम पत्र
कहीं अँधेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़ना
और फिर कस के लिपट जाना
ये सब लम्हे जस के तस है
मुझे पता है उन आँखों में अब मेरा चेहरा नहीं है
और शायद हो भी या फिर सिर्फ मेरा अक्स हो
बस हाल यही है
लिखते-लिखते हर शब्द अधूरा रह जाता है
मेरे प्रेम की तरह .....
-----निशान्त

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