हर बार भुलाने की कोशिश में फिर याद तुम्हे कर लेता हूँ
ये जख्म अभी भी गहरा है फिर बीते लम्हों को जी लेता हूँ
हर जाने वाले झोंके से फिर हाल वही कह देता हूँ
लहरों से छूटी मिटटी पर फिर नाम वही लिख देता हूँ
अब यार मेरे मुझको दीवाना पागल कहते हैं
मुँह पर उनके हँस देता हूँ मुड़कर थोड़ा रो लेता हूँ
हर भोर में आये सपने को सबसे यूँ कहता फिरता हूँ
सच हो जाये हर सपना बस इस गफलत जीता हूँ
जब बैचेनी बढ़ जाती है यूँ ही कुछ लिख लेता हूँ
शब्दों के इस संगम में थोड़ी ठंडक भर लेता हूँ
.....निशान्त