Sunday, 26 June 2016

हर बार भुलाने की कोशिश में फिर याद तुम्हे कर लेता हूँ




हर बार भुलाने की कोशिश में फिर याद तुम्हे कर लेता हूँ
ये जख्म अभी भी गहरा है फिर बीते लम्हों को जी लेता हूँ

हर जाने वाले झोंके से फिर हाल वही कह देता हूँ
लहरों से छूटी मिटटी पर फिर नाम वही लिख देता हूँ

अब यार मेरे मुझको दीवाना पागल कहते हैं
मुँह पर उनके हँस देता हूँ मुड़कर थोड़ा रो लेता हूँ

हर भोर में आये सपने को सबसे यूँ कहता फिरता हूँ
सच हो जाये हर सपना बस इस गफलत जीता हूँ

जब बैचेनी बढ़ जाती है यूँ ही कुछ लिख लेता हूँ
शब्दों के इस संगम में थोड़ी ठंडक भर लेता हूँ



.....निशान्त

Tuesday, 21 June 2016

छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक। /नरेश शांडिल्य

छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक।
सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख।।

देखा तेरे शहर को, भीड़ भीड़ ही भीड़।
तिनके ही तिनके मिले, मिला न कोई नीड़।।
मैंने देखा देश का, बड़ा सियासतदान।
न चेहरे पर आँख थी, न चेहरे पर कान।।
मैं खुश हूँ औज़ार बन, तू ही बन हथियार।
वक्त करेगा फ़ैसला, कोन हुआ बेकार।।
तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच।
तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच।।
लौ से लौ को जोड़कर, लौ को बना मशाल।
क्या होता है देख फिर, अंधियारों का हाल।।
----नरेश शांडिल्य

Thursday, 2 June 2016

एक अरसा गुजर गया तुमसे दूर हुए



एक अरसा गुजर गया तुमसे दूर हुए
तुम्हे न पाने की हताशा जब तब मुझे घेर लेती है
मन इस हताशा से दूर भागता हुआ
तुम्हारे साथ गुजारे लम्हों से मिलने पहुँच जाता है
और उंगलिया उन लम्हों को कागज पर लिखने लगती है
मुझे देखती तुम्हारी आँखों में मेरा चेहरा
प्रेम पत्रों में मुझे प्रिय का सम्बोधन
छुप-छुप कर मिलना
उन मुलाकातों में तुम्हारे दिए
वो कुछ दिन पुराने प्रेम पत्र
कहीं अँधेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़ना
और फिर कस के लिपट जाना
ये सब लम्हे जस के तस है
मुझे पता है उन आँखों में अब मेरा चेहरा नहीं है
और शायद हो भी या फिर सिर्फ मेरा अक्स हो
बस हाल यही है
लिखते-लिखते हर शब्द अधूरा रह जाता है
मेरे प्रेम की तरह .....
-----निशान्त