कोई नहीं होगा ,अकेले होगे
ढलता सूरज होगा ,घिरती रात होगी
जब तुम तनहा होगे
ये सब गिरहे तुम्हारे साथ होंगी
कोई उदास नज्म लिखोगे
उसका जाना , कहीं दूर से दिखना
खुद कहीं ठहर कर बैठ जाना
सिगरेट के धुएं में यादों का उड़ जाना ..
या उनका धुएं में अक्स दिख जाना
उस पर लिखी नज्म फिर पढोगे
पन्ने पर रखे गुलाब को फिर छुओगे
कहो कैसे भुलाओगे
जो तुम उदास नज्म लिखोगे
पार्क की खाली कुर्सी पे अकेले होना
कहीं समंदर में पैरो से बहते पानी को छूना
खुद का वहीँ ठहर जाना
आईने में खुद के पीछे उसे देखना
जो मुड़े तो उसका गायव हो जाना
कहो कैसे भुलाओगे
जो तुम उदास नज्म लिखोगे
.
.निशान्त यादव
Bhai mast lika he
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना है ||
ReplyDeleteAti Sundar...
ReplyDeleteबोहत गहरा
ReplyDelete