यहाँ इस दिशा में सूर्य रोज आकर छिप जाते है आठवें माले पर ऑफिस की खिड़की मैरे और सूर्य के बीच संवाद के माध्यम का काम करती है ये जनाव कभी इस मोवाइल टाबर पर लटक जाते है तो कभी इसकी ऊपर की मंजिल पर चढ़ कर मुझे आवाज देते है
चल भाई ! आज की दिहाड़ी पूरी हुई , कल भी आना है
मैं कहता हूँ रुको यार अभी काम बाकि है लेकिन ये जनाव नियम के पक्के है टाइम पे निकल लेते है और उधर से मुझे काम में खपते हुए देख कर खूब दांत चियारते है और इतना जोर से हँसते है की बादल भी इनकी हंसी से गुलजार रहता है देखो हँसते हँसते बादल लाल हो गया है नीचे आदम की बनाई हुई मंजिलो पर लट्टू रोशन है
सड़क पर दौड़ती गाड़ियां आठवें माले से अँधेरी रात में उड़ते जुगनू सी नजर आती है सूर्य के जाने के बाद इन्हे ही देख कर थोड़ा होंसला पा लेता हूँ , चलो अभी तो शहर जग रहा है मेरा हाल बादशाह अकबर के उस दरबारी सा जो किले के कंडील से थोड़ी गर्माहट लेते हुए रात भर पानी में खड़ा रहता है मैं इस बेहोशी में होश लिए रहता हूँ इतने में बिल्डिंग का चौकीदार आता है साहब चलिए आठ बजे के बाद यहाँ रुकना अलाउ नहीं है बैसे ये चौकीदार आठवीं पास है लेकिन शहर की आवोहवा इसे अंग्रेजी भी सिखा गई है मैं थोड़ी ठिठोली करते कहता हूँ क्या भाई अंग्रेजी सीख ली , चौकीदार थोड़ा खुश होकर कहता है साहब सब आप पढ़े लिखों की संगत है पिता के उम्र के इस चौकीदार से मुझे पिता जी की वो सीख याद आजाती है जो वे यहाँ आने से पहले हरबार देते है बेटा गलत संगत से दूर रहना ..
कार्तिक के महीने में रात भी निगोड़ी घिर जाने को तैयार बैठी रहती है देखो अब घिर आई है सामने वाली अस्पताल की बिल्डिंग पर जलती दिवाली की झालर अब तक इस रात से लड़ रही है जिस टाबर पर सूर्य लटकर कर हिलोरे लेते है ये सो गया है बस इसने अब सूर्य की जगह अपने सिरहाने लाल लट्टू जला लिया .. ताकि आसमान में उड़ते जहाज इसके होने का अहसास लेते रहे है शहर की जिंदगी इस टाबर सी है सोते हुए भी जगते रहना है यहाँ सोते है खुद के लिए और जगते है दूसरों के लिए ..
खैर इस कभी न खत्म होने वाली कल्पना से बाहर निकलते है और चलते है अपने आशियाने की तरफ .. वर्ना चौकीदार फिर से आजायेगा और डिसअलाउ कह देगा .. सुबह सूरज भाई भी आते हैं अपनी रौशनी का हंटर लिए और जोर से चिल्लाते है चल शुरू करें दिहाड़ी यारा .. अपना और सूरज का साथ ऐसा ही है ..
.....निशान्त यादव
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