Wednesday, 29 July 2015

मैं एक गहरा कुआं हूं इस ज़मीन पर.. /डा.ए. पी. जे. अब्दुल कलाम


मैं एक गहरा कुआं हूं इस ज़मीन पर..
बेशुमार लड़के-लड़कियों के लिए। जो उनकी प्यास बुझाता रहूं।
उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह ज़र्रे-ज़र्रे पर बरसती है.. जैसे कुआं सबकी प्यास बुझाता है।
इतनी सी कहानी है मेरी। जैनुलआब्दीन और आशिअम्मा के बेटे की कहानी।
उस लड़के की कहानी जो अख़बारें बेचकर भाई की मदद करता था.
उस शागिर्द की कहानी, जिसकी परवरिश शिवसुभ्रमण्यम अय्यर और अय्या दोराई सोलोमन ने की...
उस विद्यार्थी की कहानी, जिसे शिवा अय्यर और अय्या ने तालीम दी।
जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर साइंसदान बना और उस रहनुमा की कहानी जिसके साथ चलने वाले बेशुमार काबिल और हुनरमंदों की टीम थी...
मेरी कहानी मेरे साथ ख़त्म हो जाएगी क्योंकि दुनियावी मानों में मेरे पास कोई पूंजी नहीं है।
मैंने कुछ हासिल नहीं किया... जमा नहीं किया।
मेरे पास कुछ नहीं.. और कोई नहीं, न बेटा, न बेटी, न परिवार।
मैं दूसरों के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता।
लेकिन शायद कुछ पढ़ने वालों को प्रेरणा मिले कि अंतिम सुख रूह और आत्मा की तस्कीत है, ख़ुदा की रहमत, उनकी विरासत है...
मेरे परदादा अबुल, मेरे दादा पकीर, मेरे वालिद जैनुलआब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर ख़त्म हो जाएगा।
लेकिन ख़ुदा की रहमत कभी ख़त्म नहीं होगी.. क्योंकि वो अमर है, लाफ़ानी है...

Monday, 27 July 2015

देख लो ख्वाव मगर ख्वाव का चर्चा न करो/कफ़ील अजर

देख लो ख्वाव मगर ख्वाव का चर्चा न करो
लोग जल जायेंगे सूरज की तम्मना न करो
वक्त का क्या है किसी पल भी बदल सकता है
हो सके तुमसे तो मुझपे भरोसा न करो
खिरचियां टूटे हुए अक्स चुभ जाएँगी
और कुछ रोज अभी आईना देखा न करो
अजनवी लगने लगे खुद तुम्हे अपना ही बजूद
अपने दिन रात को इतना अकेला न करो
ख्वाव बच्चों के खिलौनों की तरह होते है
ख्वाव देखा न करो ख्वाव दिखाया न करो
बेख्याली में कभी यूँ गालियां जल जाएंगी
राख गुजरे हुए लम्हे की यूँ कुरेदा न करो
मोम के रिश्ते है गर्मी से पिघल जायेंगे
धुप के शहर में 'अजर' ये तमाशा न करो
_____कफ़ील अजर

Tuesday, 21 July 2015

Aap agar in dino yahaan hote/ आप अगर इन दिनों यहाँ होते

आप अगर इन दिनों यहाँ होते
हम ज़मीन पर भला कहाँ होते                                              

वक़्त गुजरा नहीं अभी वरना
रेत पर पाँव के निशाँ होते

मेरे आगे नहीं था गर कोई
मेरे पीछे तो कारवाँ होते

तेरे साहिल पे लौट कर आतीं
गर उम्मीदों के बादबाँ होते

(साहिल = किनारा), (बादबाँ = जहाज़ का पाल)

-गुलज़ार

Saturday, 18 July 2015

Eid Mubarak ईद मुबारक / केदारनाथ अग्रवाल



हमको,
तुमको,
एक-दूसरे की बाहों में
बँध जाने की
ईद मुबारक।

बँधे-बँधे,
रह एक वृंत पर,
खोल-खोल कर प्रिय पंखुरियाँ
कमल-कमल-सा
खिल जाने की,
रूप-रंग से मुसकाने की
हमको,
तुमको
ईद मुबारक।

और
जगत के
इस जीवन के
खारे पानी के सागर में
खिले कमल की नाव चलाने,
हँसी-खुशी से
तर जाने की,
हमको,
तुमको
ईद मुबारक।

और
समर के
उन शूरों को
अनुबुझ ज्वाला की आशीषें,
बाहर बिजली की आशीषें
और हमारे दिल से निकली-
सूरज, चाँद,
सितारों वाली
हमदर्दी की प्यारी प्यारी
ईद मुबारक।

हमको,
तुमको
सब को अपनी
मीठी-मीठी
ईद-मुबारक।

Saturday, 11 July 2015

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है - सरदार अंजुम - Sardar Anjum



सरदार अंजुम साहव पिछले दिनों अपनी गजलो और शायरी के साथ हमें छोड़ चले गए है
उनकी एक बड़ी चर्चित और बेहतरीन कविता है

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छूकर मेरे बदन की मिट्टी है

भूखी प्यासी भटक रही है दिल में कहीं उम्मीद् लिये
हम और तुम जिस में खाते थे उस बर्तन की मिट्टी है


लेकिन जब और आगे बढ़ा तो ये बड़ी बेहतरीन रचना मिली ..

दे के आवाज़ ग़म के मारो को
मत परेशाँ करो बहारों को

इनसे शायद मिले सुरागे-हयात
आओ सज़दा करें मज़ारों को

वो ख़िज़ा से है आज शर्मिन्दा
जिसने रुसवा किया बहारों को

दिलकशी देख कर तालातुम की
हमनें देखा नहीं क़िनारों को

हम ख़िज़ा से गले मिले "अंजुम"
लोग रोते रहे बहारों को

हमने पिछले कुछ दिनों में दो हिंदी और उर्दू की दो महान शख्सियतों को खो दिया , बशर नवाज साहव और सरदार अंजुम साहव , खवरो के हवाले से अंजुम साहव आखिरी सफर कठिन रहा , अपने इलाज के लिए उन्हें अपनी कार भी गिरवी रखनी पड़ी , लेकिन शायद जिंदगी का सफर कैसा रहेगा  , ये किस तरफ ले जायेगा इसका हमें बस भरम ही होता है ये असल में क्या होगा है ये किसी को पता नहीं .
लेकिन लेखक कभी मरता नहीं है उसके शब्द हमेशा लोगो के जेहन में जिन्दा रहते है

Bashar Nawaz-Karoge Yaad To Har Baat Yaad Aayegi / करोगे याद तो हर बात याद आयेगी -



बाजार फिल्म के गीत लिखने वाले शायर बशर नवाज इस दुनिआ से विदा ले चुके है बाजार फिल्म का ये गीत जो उनके दिलो में गहराईओं तक समाया हुआ है खुदा उन्हें जन्नत बक्शे


करोगे याद तो हर बात याद आयेगी
गुजरते वक्त की, हर मौज ठहर जायेगी

ये चाँद बीते जमानो का आईना होगा
भटकते अब्र में चेहरा कोई बना होगा
उदास राह कोई दास्तां सुनाएगी

बरसता भीगता मौसम धुआँ धुआँ होगा
पिघलती शम्मो पे दिल का मेरे गुमा होगा
हथेलियों की हिना याद कुछ दिलायेगी

गली के मोड़ पे सूना सा कोई दरवाजा
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा
निगाह दूर तलक जा के लौट आयेगी

                                         ....बशर नवाज