मैं एक गहरा कुआं हूं इस ज़मीन पर..
बेशुमार लड़के-लड़कियों के लिए। जो उनकी प्यास बुझाता रहूं।
उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह ज़र्रे-ज़र्रे पर बरसती है.. जैसे कुआं सबकी प्यास बुझाता है।
इतनी सी कहानी है मेरी। जैनुलआब्दीन और आशिअम्मा के बेटे की कहानी।
उस लड़के की कहानी जो अख़बारें बेचकर भाई की मदद करता था.
उस शागिर्द की कहानी, जिसकी परवरिश शिवसुभ्रमण्यम अय्यर और अय्या दोराई सोलोमन ने की...
उस विद्यार्थी की कहानी, जिसे शिवा अय्यर और अय्या ने तालीम दी।
जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर साइंसदान बना और उस रहनुमा की कहानी जिसके साथ चलने वाले बेशुमार काबिल और हुनरमंदों की टीम थी...
मेरी कहानी मेरे साथ ख़त्म हो जाएगी क्योंकि दुनियावी मानों में मेरे पास कोई पूंजी नहीं है।
मैंने कुछ हासिल नहीं किया... जमा नहीं किया।
मेरे पास कुछ नहीं.. और कोई नहीं, न बेटा, न बेटी, न परिवार।
मैं दूसरों के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता।
लेकिन शायद कुछ पढ़ने वालों को प्रेरणा मिले कि अंतिम सुख रूह और आत्मा की तस्कीत है, ख़ुदा की रहमत, उनकी विरासत है...
मेरे परदादा अबुल, मेरे दादा पकीर, मेरे वालिद जैनुलआब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर ख़त्म हो जाएगा।
लेकिन ख़ुदा की रहमत कभी ख़त्म नहीं होगी.. क्योंकि वो अमर है, लाफ़ानी है...