Saturday, 11 July 2015

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है - सरदार अंजुम - Sardar Anjum



सरदार अंजुम साहव पिछले दिनों अपनी गजलो और शायरी के साथ हमें छोड़ चले गए है
उनकी एक बड़ी चर्चित और बेहतरीन कविता है

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
अपने बदन को देख ले छूकर मेरे बदन की मिट्टी है

भूखी प्यासी भटक रही है दिल में कहीं उम्मीद् लिये
हम और तुम जिस में खाते थे उस बर्तन की मिट्टी है


लेकिन जब और आगे बढ़ा तो ये बड़ी बेहतरीन रचना मिली ..

दे के आवाज़ ग़म के मारो को
मत परेशाँ करो बहारों को

इनसे शायद मिले सुरागे-हयात
आओ सज़दा करें मज़ारों को

वो ख़िज़ा से है आज शर्मिन्दा
जिसने रुसवा किया बहारों को

दिलकशी देख कर तालातुम की
हमनें देखा नहीं क़िनारों को

हम ख़िज़ा से गले मिले "अंजुम"
लोग रोते रहे बहारों को

हमने पिछले कुछ दिनों में दो हिंदी और उर्दू की दो महान शख्सियतों को खो दिया , बशर नवाज साहव और सरदार अंजुम साहव , खवरो के हवाले से अंजुम साहव आखिरी सफर कठिन रहा , अपने इलाज के लिए उन्हें अपनी कार भी गिरवी रखनी पड़ी , लेकिन शायद जिंदगी का सफर कैसा रहेगा  , ये किस तरफ ले जायेगा इसका हमें बस भरम ही होता है ये असल में क्या होगा है ये किसी को पता नहीं .
लेकिन लेखक कभी मरता नहीं है उसके शब्द हमेशा लोगो के जेहन में जिन्दा रहते है

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