Monday, 27 July 2015

देख लो ख्वाव मगर ख्वाव का चर्चा न करो/कफ़ील अजर

देख लो ख्वाव मगर ख्वाव का चर्चा न करो
लोग जल जायेंगे सूरज की तम्मना न करो
वक्त का क्या है किसी पल भी बदल सकता है
हो सके तुमसे तो मुझपे भरोसा न करो
खिरचियां टूटे हुए अक्स चुभ जाएँगी
और कुछ रोज अभी आईना देखा न करो
अजनवी लगने लगे खुद तुम्हे अपना ही बजूद
अपने दिन रात को इतना अकेला न करो
ख्वाव बच्चों के खिलौनों की तरह होते है
ख्वाव देखा न करो ख्वाव दिखाया न करो
बेख्याली में कभी यूँ गालियां जल जाएंगी
राख गुजरे हुए लम्हे की यूँ कुरेदा न करो
मोम के रिश्ते है गर्मी से पिघल जायेंगे
धुप के शहर में 'अजर' ये तमाशा न करो
_____कफ़ील अजर

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