Sunday, 21 June 2015

पिता दिवस पर मेरी यादें (Father's Day)


योग दिवस की खुमारी से निकल कर जब होश आया तो गूगल फेसबुक और ट्वीटर ने खवर दी की आज पिता दिवस है अब इस जानकारी के न होने को में अपना अज्ञान समझता हूँ ये तो भला हो इन सोशल मिडिया बालो का जो ये किसी भी दिन को भूलने नहीं देते है वर्ना हमें तो वही दिवस याद रहते जिनकी की छुट्टी हो मेरा वश चले तो में हर दिन इन रिश्तों के नाम कर दूँ 
हमारी नयी पीढ़ी के लड़के तो अपने बच्चों के साथ पिता और दोस्त दोनों रिश्ते में रहते है लेकिन हमारे पिता ऐसे नहीं होते 
उनका लहजा सख्त लेकिन ह्रदय में असीम प्रेम लिए रहता है मेरे पिता  अध्यापक से रिटायर हो चुके है अब वक्त के साथ काफी नरम लहजे के हो गए है लेकिन पहले बड़े सख्त थे मुझे याद है बचपन में  मेरी बड़ी बहन और भाई टीवी या रेडियो चला रहे होते थे तव हमारा एक कान दरवाजे की कुण्डी पर ही रहता है जैसे ही 1:30 पर कुण्डी बजी सब बंद और एक दम छम्म से शांत लेकिन फिर भी वे समझ जाते थे हमें जव भी कुछ मांगना होता था तब हम माँ के कान में फ़ुसफ़ुसाया करते थे लेकिन पिता को पता चल जाता था वो बुलाते और बोलते क्या चाहिए लेकिन हमारी जुवान फिर भी नहीं खुलती थी फिर माँ ही कह दिया करती और हमारा काम हो जाता था, ये सब  डर या ख़ौफ़ नहीं था ये बस उस समय के हिसाव से उनका स्वभाव ही था आज बही पिता समय के बदलते परिवेश में दोस्त बन गए है 
दरअसल माँ हमारी प्रथम गुरु होती है लेकिन पिता हमें सही दिशा देते है वे पथप्रदशक होते हैं हम सामाजिक ताने वाने को पिता के पदचिन्हों पर चल कर ही सीखते है पिता हमारे जीवन में उस विशाल व्रक्ष की तरह है जिसकी मजवूत डालियों पर हम झूला डाल कर बचपन जीते है उसके पत्ते की छाँव हमें तेज धुप से बचाती हुई सुख की नींद देती है और जीने के लिए हमारी साँसों में ऑक्सीजन भर देती है इस लिए पिता हमारे जीवन का आधार होते है

हमारे यहाँ भादों के महीने में मेला लगता है पिता जी अपने मजवूत कंधो पर हमें मेले की सेर कराया करते थे और मैं उनके कंधो पर बैठा हुआ सातवे आसमान पर होना महसूस करता था ऐसा लगता है जैसे में  दुनिया के  सबसे ऊँचे स्थान पर बैठा हूँ पिता जी रोज मुझे साईकिल के आगे डंडे पर बिठा बाजार और स्कूल ले जाया करते थे कभी गंगा जी नहाने जाते थे तो वे डंडे पर कपडा लपेटकर बैठने के लिए गद्देदार बना दिया करते थे ताकि लम्बी दुरी में डंडा चुभे नहीं , पीछे कैरियर पर  में बैठता नहीं था क्योकि पीछे बैठ कर आगे का कुछ दिखता नहीं था . धीरे धीरे में बड़ा होता गया और पिता उम्र के बढ़ते पड़ाव में , और फिर पीछे कैरियर पर बैठने लगा , जब पिता जी मुझे खींचते हुए थक जाते तो कहते तुम अब भारी हो गए हो , मै कहता चलो में चलाता हूँ आप बैठो लेकिन पिता जी ने मुझे कभी ऐसा नहीं करने दिया  , मै साईकिल चलाना भी पिता से ही सीखा .. 

कई बार हम पिता से और पिता हमसे अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते , ये कसक हर बार मुझे रहती है हम पिता के चरण तो छु लेते है लेकिन कभी गले नहीं लग पाते है बचपन में पिता की गोद में खेले जरूर है लेकिन बड़े होकर जो सुख पिता के गले लगने का है वो कहीं नहीं , मै खुद कभी ये हिम्मत नहीं कर पाया , ये गले लगने का सुख सिर्फ मेरी कल्पना है ये कल्पना मै एक दिन साकार जरुरु करूँगा , आप करिये और पिता के गले लगते हुए आई लव यू पापा कहिये और फिर बताइये आप को कितना सुख मिला ..  मुझे आज कवि ओम व्यास जी की पिता पर ये कविता याद गई ..आप  सब ने इसे कई बार पढ़ा होगा आज भी पढ़िए और अपने पिता से गले जरूर मिलिए  आप सब की भी पिता से जुडी तमाम यादें होंगी आज के दिन आप सब यादों को यहाँ कहिये ,, धन्यवाद

पिता, पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है,
पिता, पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है,

पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है,
पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है,

पिता, पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,
पिता, पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है,

पिता, पिता रोटी है, कपडा है, मकान है,
पिता, पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है,

पिता, पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,

पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,

पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,

पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है,
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है,

पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है,
पिता, पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ति है,

पिता, पिता एक जीवन को जीवन का दान है,
पिता, पिता दुनिया दिखाने का अहसान है,

पिता, पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,

पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो,
पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो,

क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,
और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता,

विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,

विश्व में किसी भी तीर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,
यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,

वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,
क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते हैं।

No comments:

Post a Comment