Wednesday, 24 June 2015

असाढ़ की बारिश ....



असाढ़ की ये बारिश गर्मी की तपन से जब तब राहत देती जा रही है डेल्ही में तेज हवा अपने साथ पानी के बादल भी लेती आई है बारिश में घिर जाने  की जल्दी में लपक के लिफ्ट पकड़ के नीचे उतर लिए हम मानव भी कितने अजीब है जब नहीं होती तब हाय बारिश चिल्लाते है और जब आगई तो बच के घर पहुचने की जल्दी रहती है लिफ्ट से उतरते ही सड़क पर खड़ी कैब की अगली सीट पे लद् से कब्जा जमा लिया विंडो सीट पर बैठने की जिद बचपन से ही पैदा हो  गई  है गर्मी में तो सड़क की तरफ देखने का मन भी नहीं करता नागिन सी लगती है पर इस बारिश में ठंडी हवा और नजारो का मोह कौन छोड़े, सड़क पर हर कोई जल्दी पहुचने की जल्दी में  है जाना सब को घर ही है पर जल्दी सब को  है शायद घर पर पहले ही अपनी माँ या पत्नी को  चाय पकोड़ी का फरमान दे दिया होगा । और जो अकेले है वो तले अकेले हमारी तरह ...

कार के आगे वाले सीसे पर बूँद टप टप करती हुई बरस रही है ड्राईवर बार बार  वाइपर चला देता है
यहाँ प्रकृति और इंसानी मशीन के बीच घमासान चल रहा है बूँद तो पीछे हटने को तैयार नहीं और ये वाइपर ! इसका तो बटन इंसान के हाथ में है तो ये तो हार मानने से रहा खेर बादलो ने अपनी बूँद को बापिस बुला लिया है और इधर वाइपर भी बंद है एक दो छिटपुट बूँद ही गिर रही है इधर अपोलो के पास मक्का के भुंटे बेंचने वाले अपना सामान समेटकर अपने अपने हिसाब से बारिश से बचने की जुगत में है लेकिन भुंटे की खुशुबू  अब तक उनके भुने होने की खवर दे रही है
इधर ड्राइवर 1990 के दशक के सोनू निगम के गाने बजा रहा है

"कोई उनसे कह दो सफ़र आखिरी है
वो मेरा जनाजा उठाने लगे है "

ड्राइवरों की भी अपनी अलग दुनिया है हम लाख संगीत प्रेमी होने का दावा करते रहे है लेकिन इनसे ज्यादा नहीं हो सकते । इनसे  ज्यादा संगीत प्रेमी इस  दुनिया में गीतकार या संगीतकार ही होता होगा
खेर लिखते लिखते यमुना जी के पुल पे आगये है मै  रोज इधर से आता जाता हूँ और जब मेरा ध्यान यमुना जी के जल पर जाता है मन में पहले क्रोध फिर हताशा  के भाव आजाते है  आखिर हमने अपनी जीवनदायनी नदियों को भी नहीं बक्शा यमुना जी का पानी ऐसा की आप सूंघ ले तो बीमार हो जाये  । हम धर्म और आस्था के नाम पर मरने मारने को तैयार होते है लेकिन खुद ही उस आस्था की धज्जियां उड़ा रहे हैं
एक तरफ यमुना पर अरबो की मेट्रो चलाने की तैयारी है लेकिन जो सरकार का  गंगा यमुना सफाई का
मंत्रालय है  शायद पैसे के अभाव में जी रहा है  योग पर करोडो खर्च करने वाली सरकार से कोई ये पूंछे जव पानी और हवा ही साफ नहीं होंगे तो अनुलोम विलोम में क्या खाक साँस शुद्द होगी

अब ये बत्ती भी लाल हो गई रुकने का इशारा कर रही है सब रुके है तमाम कारों, मोटरसाइकिल और पैदल आदमियोँ की भीड़ है और इधर कैब में गाना बज रहा है

"जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले है
भीड़ है कयामत की फिर भी हम अकेले हैं"

यहाँ शहर में हर कोई अकेला ही है  कहता कोई नहीं है
कैब जहाँ उतारती है वहां से घर तक की दूरी लगभग एक किलो मीटर है सो पैदल ही चल लेते है घर जाते रास्ते में जामुन का बाग पड़ता है नोएडा अथॉरिटी के पार्क में ही है बारिश के बाद ये जामुन पेड़ भीनी भीनी सुगंध देते है और में आँख बंद कर इसकी खुशबु की रौ में बहता हुआ गावँ के बाग़ में पहुँच जाया करता हूँ
बाग के सामने ही ये दो चालीस मंजिल इमारते सखियो सी खड़ी है इनका मालिक मंजिल दर मंजिल बनाता ही जा रहा है  इनकी सुरक्षा में दो गार्ड चचा तैनात है क्यों की अभी इनमे बस्ती नहीं बसी है । हालाकिं सुरक्षा तो तब भी होगी लेकिन इनकी नहीं इसमें रहने वाले इंसानो की होगी
जब गावँ में  थे तब ये बाग और खुशबु समझ नहीं आती थी लेकिन जबसे इन सब से दूरी बढ़ी है इनकी याद कहीं न कहीं मुझसे टकरा ही जाती है किसी ने सच कहा है दूर रहने के बाद यादों में कशिश और बढ़ जाती है खेर अब चलता हूँ  आप इलायची वाली चाय का मजा लीजिये शुभः संध्या!

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