Sunday, 28 June 2015

समय से हारा नहीं मैं ..


समय से हारा नहीं मैं
लड़ता रहा आखिरी उम्मीद तक
इक्छाओं  और उम्मीद के पंख
मुझे सूर्य की तरफ उड़ाते ले गए
इक्छा  का एक पंख झुलस गया
उम्मीद का एक पंख बाकी रहा
तेज हवा के झोके ने जमीं पर ला पटका
मैं फिर से उड़ा
उम्मीद के एक पंख के सहारे
उड़ते उड़ते इक्छा  का पंख
फिर से उग आया
ये अबके चाँद पर ले गया
चाँद की ठंडक ने इसे जकड लिया
मैं  फिर से जमीं पर आ गिरा
अब जमीं के समतल उड़ता हूँ
सिर्फ उम्मीद के पंख के बल
इक्षा का पंख जब तब ही जाता है
समय से हारा नहीं मैं
पठारों से टकराया , गिरता रहा
लड़ता रहा , उड़ता रहा

समय से हारा नहीं मैं ...

............निशान्त यादव 

No comments:

Post a Comment