वो दिन मेरे जेहन में आज भी जिन्दा है जब रामलीला मैदान में अन्ना हजारे अपने बजीरो के साथ देश की तत्कालीन सरकार के खिलाफ हुंकार भर रहे है थे उस समय तमाम राजनैतिक विपक्षी अन्ना के समर्थन में आ खड़े हुए और उस समय अन्ना जी का साफ आदेश था , कोई राजनैतिक आदमी मंच पर नहीं चढ़ने पाये | उनके इस आदेश की तामील करने वाली किरण वेदी जी थी , उन्होंने उस समय के तमाम राजनैतिक लोगो से कठिन सवाल पूछे और उन पर तेज हमले भी किये उन्होंने उन्ही मोदी से दंगे का कभी न माफ़ करने वाला सवाल पुछा तो जिन अरुण जेटली जी के उपस्थिति बीजेपी की सदस्य्ता ली , उन पर भी आरोप लगाये , अन्ना आंदोलन के दो धुरी थे किरण वेदी और अरविन्द केजरीवाल , केजरीवाल तो पहले ही राजनीती में आ चुके है और कहीं न कहीं उन्होंने इस देश में एक नयी राजनीती की सोच को जीवित किया है और उसका असर ही एक आज बीजेपी को नरेंद्र मोदी की अच्छी छवि के बाबजूद किरण वेदी को लाना पड़ा . वार्ना किरण वेदी जैसी कड़क महिला को बीजेपी क्या कोई भी राजनैतिक पार्टी शामिल करना नहीं चाहेगी , किरण वेदी की अपनी एक शैली है और मुझे उम्मीद है बो अब भी उस शैली पर कायम रहेगी | भारत में जो भी बड़े जन आंदोलन हुए है जो सरकारों की निरंकुशता के खिलाफ खड़े हुए उनका अंत राजनैतिक ही हुआ , वे जिस गन्दी राजनीती के खिलाफ खड़े हुए , अंत में उस आंदोलन सेनापति को दरनिकार करते हुए उसके सिपाही भी उसी गन्दी राजनीती में जा मिले जिसको उन्होंने कथित रूप से गन्दा वताया , इतिहास गवाह है जेपी आंदोलन से निकले बिहार के नेता हो या उत्तर प्रदेश के नेता सभी जातिवाद , सम्प्रदायवाद , भ्रष्टाचार के गलियारों से होते सत्तासीन हुए , हमने तब भी एक अच्छी राजनीती की शुरुआत की उम्मीद की थी , लेकिन समय साथ हमारी उम्मीदें टूटती गयीं और फिर उसी आंदोलन के क्रांतिकारिओं से त्रस्त होकर फिर एक नयी आशा के रूप अन्ना आंदोलन का साथ दिया , और एक जनलोकपाल की मांग की , हालांकि हम में से तमाम आशावादीलोगो को जनलोकपाल के बारीक़ फायदे के वारे में नहीं पता था , बस इतना था ये शब्द हमें कुछ राहत देगा , लेकिन अंतता इस आशा का राजनैतिक अंत ही हुआ , एक सुखद ये रहा इस आंदोलन के सिपाही ने एक नयी तरह की राजनीती की शुरुआत की , और उसी कड़ी का एक हिस्सा है किरण वेदी का बीजेपी में शामिल होना , ये बड़ी सही शुरुआत है किरण वेदी यदि बीजेपी की मुख्यमंत्री बनती है और उनकी शैली भी बही १९८४ हो या इंद्रा गांधी की कार पार्किंग का मामला हो , तो फिर जरूर कुछ सही हो जायेगा , लेकिन मुझे इसकी उम्मीद बड़ी क्षीण लगती है क्यों की किरण वेदी चर्चित जरूर है लेकिन उनके पास जनाधार नहीं , और जिन नेताओं के पास जनाधार है बो किरण वेदी के आने से बैकफुट में आगये है हालाकिं अभी वे भले ही ही ही करते हो लेकिन कहीं न कहीं ये चुभन उनके ह्रदय में रहेगी , और मुझे ऐसा शक है किरण वेदी इसी गुटबाजी का शिकार हो जायेगीं , किरण अमित शाह और बीजेपी के पाश में फंस गयीं , बीजेपी ने धीरे इस लड़ाई को मोदी वनाम केजरीवाल से , वेदी वनाम केजरीवाल कर दिया है , वेदी जीती तो बीजेपी और मोदी की जय , यदि वो हारी तो फिर वेदी की हार ,और यदि वे कथित राजनीति से समझोता क़र लेती है तब फिर इस देश में लोगो आंदोलनों के विश्वास उठ जायेगा , शायद फिर कोई जेपी , अन्ना , किरण , या केजरीवाल नहीं होंगे , ..........
Saturday, 17 January 2015
जन आंदोलनों का राजनैतिक अंत -Movement Dead on Politics
वो दिन मेरे जेहन में आज भी जिन्दा है जब रामलीला मैदान में अन्ना हजारे अपने बजीरो के साथ देश की तत्कालीन सरकार के खिलाफ हुंकार भर रहे है थे उस समय तमाम राजनैतिक विपक्षी अन्ना के समर्थन में आ खड़े हुए और उस समय अन्ना जी का साफ आदेश था , कोई राजनैतिक आदमी मंच पर नहीं चढ़ने पाये | उनके इस आदेश की तामील करने वाली किरण वेदी जी थी , उन्होंने उस समय के तमाम राजनैतिक लोगो से कठिन सवाल पूछे और उन पर तेज हमले भी किये उन्होंने उन्ही मोदी से दंगे का कभी न माफ़ करने वाला सवाल पुछा तो जिन अरुण जेटली जी के उपस्थिति बीजेपी की सदस्य्ता ली , उन पर भी आरोप लगाये , अन्ना आंदोलन के दो धुरी थे किरण वेदी और अरविन्द केजरीवाल , केजरीवाल तो पहले ही राजनीती में आ चुके है और कहीं न कहीं उन्होंने इस देश में एक नयी राजनीती की सोच को जीवित किया है और उसका असर ही एक आज बीजेपी को नरेंद्र मोदी की अच्छी छवि के बाबजूद किरण वेदी को लाना पड़ा . वार्ना किरण वेदी जैसी कड़क महिला को बीजेपी क्या कोई भी राजनैतिक पार्टी शामिल करना नहीं चाहेगी , किरण वेदी की अपनी एक शैली है और मुझे उम्मीद है बो अब भी उस शैली पर कायम रहेगी | भारत में जो भी बड़े जन आंदोलन हुए है जो सरकारों की निरंकुशता के खिलाफ खड़े हुए उनका अंत राजनैतिक ही हुआ , वे जिस गन्दी राजनीती के खिलाफ खड़े हुए , अंत में उस आंदोलन सेनापति को दरनिकार करते हुए उसके सिपाही भी उसी गन्दी राजनीती में जा मिले जिसको उन्होंने कथित रूप से गन्दा वताया , इतिहास गवाह है जेपी आंदोलन से निकले बिहार के नेता हो या उत्तर प्रदेश के नेता सभी जातिवाद , सम्प्रदायवाद , भ्रष्टाचार के गलियारों से होते सत्तासीन हुए , हमने तब भी एक अच्छी राजनीती की शुरुआत की उम्मीद की थी , लेकिन समय साथ हमारी उम्मीदें टूटती गयीं और फिर उसी आंदोलन के क्रांतिकारिओं से त्रस्त होकर फिर एक नयी आशा के रूप अन्ना आंदोलन का साथ दिया , और एक जनलोकपाल की मांग की , हालांकि हम में से तमाम आशावादीलोगो को जनलोकपाल के बारीक़ फायदे के वारे में नहीं पता था , बस इतना था ये शब्द हमें कुछ राहत देगा , लेकिन अंतता इस आशा का राजनैतिक अंत ही हुआ , एक सुखद ये रहा इस आंदोलन के सिपाही ने एक नयी तरह की राजनीती की शुरुआत की , और उसी कड़ी का एक हिस्सा है किरण वेदी का बीजेपी में शामिल होना , ये बड़ी सही शुरुआत है किरण वेदी यदि बीजेपी की मुख्यमंत्री बनती है और उनकी शैली भी बही १९८४ हो या इंद्रा गांधी की कार पार्किंग का मामला हो , तो फिर जरूर कुछ सही हो जायेगा , लेकिन मुझे इसकी उम्मीद बड़ी क्षीण लगती है क्यों की किरण वेदी चर्चित जरूर है लेकिन उनके पास जनाधार नहीं , और जिन नेताओं के पास जनाधार है बो किरण वेदी के आने से बैकफुट में आगये है हालाकिं अभी वे भले ही ही ही करते हो लेकिन कहीं न कहीं ये चुभन उनके ह्रदय में रहेगी , और मुझे ऐसा शक है किरण वेदी इसी गुटबाजी का शिकार हो जायेगीं , किरण अमित शाह और बीजेपी के पाश में फंस गयीं , बीजेपी ने धीरे इस लड़ाई को मोदी वनाम केजरीवाल से , वेदी वनाम केजरीवाल कर दिया है , वेदी जीती तो बीजेपी और मोदी की जय , यदि वो हारी तो फिर वेदी की हार ,और यदि वे कथित राजनीति से समझोता क़र लेती है तब फिर इस देश में लोगो आंदोलनों के विश्वास उठ जायेगा , शायद फिर कोई जेपी , अन्ना , किरण , या केजरीवाल नहीं होंगे , ..........
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आइये आज हम आपको केजरीवाल नामक पदार्थ बनाने की विधि बताते हैं ...... पसंद आये तो शाबाशी दीजियेगा पर दाद खाज खुजली नहीं ....... कॉंग्रेस से थोड़ा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण लीजिए ...... उसमे वामपंथ एवं माओवाद का देशद्रोह मिलाइए ...... पाकिस्तानी दुबई के पैसे पर थोड़ी देर हरा रंग आने तक गर्म कीजिए ....... अब इसमे आज़म ख़ान एवम् ओवैसी का जिहादी प्रोपगेंडा छिड़किये ...... फिर बुखारी के घर से आया %%% डालिए ...... धीमी आँच पर मणिशंकर की हरामखोरी मिलकर हिलाते रहें .... बीच बीच में बोलते रहे' हमारी तो 400 सीट आ रही है जी'....... अदानी अम्बानी तो भ्रष्ट है जी ....... सब मिले हुए है जी ....... ये मिश्रण हो जाने पर स्वादानुसार उपर-उपर से नीतीश का अहंकार और ममता की थेथरई छिड़क दे ....... इसके साथ ही दिल्ली का केजरीवाल तैयार हो गया ...... दिल्ली की जनता के सामने गर्मागर्म परोसें .....
ReplyDelete@Arun Vaish : अजीब सोच है आपकी . . .
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