Thursday, 5 February 2015

प्रेम समर है कठिन रे साथी

प्रियतम प्रेम राग न छेड़ो
मैं  विरह से भरा हुआ हूँ
वादो के  इस भंबरजाल में
नाउम्मीदी से घिरा  हुआ हूँ
प्रेम तत्व है जोड़ने वाला
मैं  इससे अब टूट चुका हूँ
बेमानी है कस्मे वादे
मैं  इनसे ही लुटा हुआ हूँ
में हूँ प्रेम का ऐसा पंछी
जिसकी रही उड़ान अधूरी
मेरे पंख थके समर में
नव पल्लव कहा से लाऊँ
प्रेम समर है कठिन रे साथी
मैं  हारा हूँ इसी समर में ....


निशांत यादव 

1 comment:

  1. में हूँ प्रेम का ऐसा पंछी
    जिसकी रही उड़ान अधूरी
    मेरे पंख थके समर में
    नव पल्लव कहा से लाऊँ
    प्रेम समर है कठिन रे साथी
    सुन्दर शब्द

    ReplyDelete