ये रात का
अँधेरा हमसफ़र बन गया है मेरा
अब
दिन का उजाला रुसवा है मुझसे
जो
पौधा सींचा था , तुमने मुरझा सा गया है
रोज
पानी देता हूँ तुम्हारे नाम का इसे
ये
अब भी प्यासा सा है
फूल
की कली जुदा हो गई है उससे
ये
भवंरा अब तनहा हो गया है
* * * * * * * * * * *
* * * * * * * * *
देखो ये पौधा अब मुस्कुरा सा रहा है
देखो ये पौधा अब मुस्कुरा सा रहा है
तुम्हारे
कदमो की आहट है
या
फिर वहम इसका
कोई
खवर है या महज अफवाह तुम्हारी
मेरे
ह्रदय में हलचल सी मची है
शायद
दिन का उजाला ,फिर से मेरा हो गया है
निशांत यादव
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