
मैं भी आता हूँ
तुम लायी हो ठन्डे झोके
मैं भी एक गीत गाता हूँ
तुम लाये हो सावन का मौसम
मैं भी एक मल्हार गाता हूँ
तुमने भेजे हैं बूदों के मोती
मैं भी एक माला पिरोता हूँ
ऐ हवाओं जरा ठहरो
मैं भी आता हूँ
तुम आई हो सागर से मिलके
आओ मैं भी तुम्हे अपनी नदी से मिलाता हूँ
लौट कर जाओ तो सागर से कहना
ये नदी अब सूखी है
लौट कर जाओ तो सागर से कहना
ये नदी तुम्हारे मिलन को तरसती है
लौट कर आओ तो कुछ बुँदे ले आना
ये नदी बिन आँसुओं के रोती है
लौट कर जाओ तो सागर से कहना
ये नदी अब सूखी है
लौट कर जाओ तो सागर से कहना
ये नदी तुम्हारे मिलन को तरसती है
लौट कर आओ तो कुछ बुँदे ले आना
ये नदी बिन आँसुओं के रोती है
ऐ हवाओं जरा ठहरो
मैं भी आता हूँ
ये जो लिखा है कुछ अधूरा सा है
शायद पेड़ों का दर्द और पंछिओं कि प्यास अभी बाकि है
.....(निशांत यादव )
सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
बहुत खूब
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