Friday, 20 June 2014

डायरी के पन्नो के बीच कुछ कहती गुलाब की पंखुड़िआ

"डायरी के पन्नो के बीच कुछ कहती गुलाब की पंखुड़िआ "
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कुछ साल पहले तुम्हारे दिए गुलाब की पंखुड़िआ अब सूख गई हैं   
तुम्हारी लिखावट के साथ डायरी के पन्नो में सहेज के रखा है इन्हे           
जब भी डायरी के उन पन्नो को खोलता हूँ 
पन्नो के बीच दबी ये पंखुड़िआ मुझे ताजी सी लगने लगती है 
शायद अब भी ये तुम्हारी उंगलिओं की छुअन के इंतजार में है 
एक पल का ही सही मगर मुझे भी तुम्हारे होने का भ्रम होने लगता है 
लोग सही कहते है अहसास कभी मरते नहीं है 
देखो न मरते तो फिर ये पंखुड़िया 
तुम्हारी लिखावट के साथ डायरी के पन्नो में न होती ,
चलो कुछ दिन और जीता हूँ इन सूखी पँखुडिओं के साथ 
सिर्फ तुम्हारे करीव होने के भरम में

                                                       निशांत यादव 
                                                                                               

Tuesday, 17 June 2014

शहर की चमकती रातें और मेरा ख्वाव ..........

शहर की चमकती रातों में सुकून ढूढ़ताहूँ
बत्तिओं की चमक में जुगनुओं को ढूढ़ताहूँ ,                                               
मैं रोज ,
चमक को छोड़कर आशियाँ की तरफ निकलता हूँ ,
अँधेरी रात के ख्वावो से गुजरता हूँ ,
कभी आया था मंज़िल की तलाश में
अब खुद ही बेख़वर हूँ
तलाश - ऐ- मंजिल से अपनी ,
वो रातें गाँव की अब भी जेहन में है
शांत सुकून से भरी रात
झींगुर की चर्र -चर्र , जुगुनू की टिम- टिम
कड़कती ठंडी सी रातो में आग से तापना
झट से ख्वाव टूटा ,
मेरा आशियाँ करीव था और मेरा ख्वाव
मुझसे दूर .........................

                                                              निशांत यादव 

Sunday, 8 June 2014

माँ की गिलहरी

एक 28 साल का शादी शुदा लड़का अपनी बूढी माँ के साथ पार्क में लगी बड़ी सी कुर्सी पे बेठा था ,
माँ काफी बूढी हो गई सो आँखों से दिखता भी कम था , माँ को कुछ धुंधला सा दिखाई दे रहा था
माँ ने बेटे से पूछा बेटा ये क्या है? बेटा बोला माँ गिलहरी है ,
थोड़ी देर बाद माँ ने फिर पूछा बेटा ये क्या है ? बोला माँ गिलहरी है ,

माँ  ने ऐसा 4-5 बार पूछ लिया , अगली बार लड़का झल्लाया और  चिल्ला कर वोला कितनी बार बता चुका हूँ 
गिलहरी है गिलहरी है  , सुनाई नहीं देता , बुढ़ापे में तुम्हारे कान भी बहरे हो गए है ,
माँ का ह्रदय द्रवित हो गया , लेकिन माँ तो माँ है , वो संभल कर , एक डायरी बेटे की ओर करते हुए वोली ,
बेटा जरा देख तो सही ये किसकी डायरी है , बेटे ने डायरी खोली और , डायरी के चोथे पन्ने को  पढ़ के लड़के की आखों
में आंसू आगये  ,डायरी में लिखा था... " बचपन में तूने 21 बार पूछा था माँ ये क्या है और माँ ने प्यार से २१ बार एक ही जवाव दिया था "
......बेटा ये गिलहरी है गिलहरी है ...



        निशान्त यादव     


Monday, 2 June 2014

जिंदगी के इस सफ़र में इक मुकाम चाहता हूँ

जिंदगी के इस सफ़र में इक मुकाम चाहता हूँ ,                                                

गिर के फिर से उड़ना चाहता हूँ|
आज जब मुझको लगा मिल गया मेरा मुकाम, 
पर ये फिर से बेबफाई कर गया|

जिंदगी के इस सफ़र में इक मुकाम चाहता हूँ , 
टूट कर फिर से जुड़ना चाहता हूँ|

जिंदगी क्यू इतनी कठिन है 
 इसका जबाब चाहता हूँ ,
पूछता हूँ जब खुदा से बता इसका फ़साना क्या है ,

मुस्कुरा के बस इतना कहता , 
जिंदगी इक रास्ता है ,
डूंड ले अपने मुकाम को ,
रास्ते में तेरा मुकाम  है ,

आज में फिर से चला हूँ 
आज में फिर से खडा हूँ ,
जिंदगी के इस सफ़र में इक मुकाम चाहता हूँ|

निशान्त यादव...........

Sunday, 1 June 2014

ये जो बादल तेरी यादों के घुमड़ते हैं !

ये जो बादल तेरी यादों के घुमड़ते हैं !
बरसते ही नहीं !
जब ये गरजते हैं !
तो टकटकी लगा लेता हूँ 
बस कुछ बूंदो के इंतजार में !
देख ये अब फिर घुमड़े हैं !
पूछा तो बोले !
बूंदे तेरी कैद में हैं !
                                 ......(निशान्त यादव )