Friday, 30 May 2014

ये जो पैरो के निशां तुमने छोड़े हैं

ये जो पैरो के निशां तुमने छोड़े हैं                                                              
ढूढ़ते तुम्हे इनपे चल के आया हूँ 

ये जो छोड़ी है 
तुमने हर निशानी अपनी 
पता तुम्हारा हर निशानी से पूछता आया हूँ 

हंसी मिली तुम्हारी ,
मौन थी , 
बोली ..
तुम उसे छोड़ आये हो 

कुछ पग चिन्ह और नापे
ये मौन की तरफ थे
यहाँ तुम्हारे कदमो आहट है 


सफर ऐ जिंदगी कठिन है
असंभब तो नहीं
लौट आओ इस सफर से
हसीं तुम्हारे मिलन को रोती है
ये जो पैरो के निशां तुमने छोड़े हैं......

                                                    (निशान्त यादव )

1 comment: