Sunday, 8 January 2017

वो मेरे सपनो में अब भी आती है



वो मेरे सपनो में अब भी आती है
मेरी जान मुझको यूँ सताती है
जब भी सोता हूँ यूँ जगाती है
दिल में बैचैनी भर जाती है
मैं हर उसके सपने को झुठलाता हूँ
वो हर रोज बंद आँखों में हकीकत सी बन जाती है
वो मिलना छिपके गलियों में
इजहारे-ऐ इश्क़ आँखों आँखों में
पुराने हुए खत को नया सा पढ़ना यूँ
किसी ने देखा तो नहीं ,  धुक धुकी दिल में
मुझसे फिर इश्क़ में जवां कर जाती है
गुजरे लम्हों से ये आलिंगन मेरा
वो खुद की डोर मुझसे जोड़ जाती है
वो मेरे सपनो में अब भी आती है
मेरी जान मुझको यूँ सताती है

--------निशान्त

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