Friday, 18 December 2015

मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको /अदम गोंडवी



अदम गोंडवी , मूल नाम रामनाथ सिंह , आज अदम गोंडवी साहव की पुण्यतिथि है गोंडवी साहब ने  अपनी कविताओं में हिंदुस्तान के गांव  देहात के दर्द  , देश की शोषकवादी राजनीती , सामंतवाद , पूंजीबाद , जातिगत छुआछूत पर प्रहार करती हुई कवितायेँ लिखी .. उनकी लिखी कविता जो आज भी एक दम जस की तस है जिसे अक्सर लोग राजनीती पर कटाक्ष के रूप में इस्तेमाल करते है
"काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में"

गोंडवी साहब जैसा धारदार लेखन कहीं नहीं मिलता , मैं आज के दिन उनकी कुछ कवितायेँ शेयर कर रह रहा हूँ ..
1:
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

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2:
जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसाल में

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3:
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है


                                                                       निशान्त यादव ..

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