लाहौर के उस पहले जिले के,
दो परगना में पहुंचे,
रेशम गली के दूजे कूचे के,
चौथे मकां में पहुंचे,
कहते हैं जिसको दूजा मुल्क,
उस पाकिस्तान में पहुंचे,
लिखता हूं खत मैं हिंदुस्तां से
पहलु-ए-हुस्ना में पहुंचे,
ओ हुस्ना…
दो परगना में पहुंचे,
रेशम गली के दूजे कूचे के,
चौथे मकां में पहुंचे,
कहते हैं जिसको दूजा मुल्क,
उस पाकिस्तान में पहुंचे,
लिखता हूं खत मैं हिंदुस्तां से
पहलु-ए-हुस्ना में पहुंचे,
ओ हुस्ना…
मैं तो हूं बैठा,
ओ हुस्ना मेरी, यादों पुरानी में खोया,
पल पल को गिनता
पल पल को चुनता
बीती कहानी में खोया
पत्ते जब झड़ते हिंदुस्तां में
बातें तुम्हारी ये बोलें
होता उजाला जब हिंदुस्तां में
यादें तुम्हारी ये बोलें
ओ हुस्ना मेरी ये तो बता दो
होता है ऐसा क्या उस गुलिस्तां में
रहती हो नन्ही कबूतर सी गुम तुम जहां
ओ हुस्ना मेरी, यादों पुरानी में खोया,
पल पल को गिनता
पल पल को चुनता
बीती कहानी में खोया
पत्ते जब झड़ते हिंदुस्तां में
बातें तुम्हारी ये बोलें
होता उजाला जब हिंदुस्तां में
यादें तुम्हारी ये बोलें
ओ हुस्ना मेरी ये तो बता दो
होता है ऐसा क्या उस गुलिस्तां में
रहती हो नन्ही कबूतर सी गुम तुम जहां
ओ हुस्ना…
पत्ते क्या झड़ते हैं पाकिस्तान में वैसे ही
जैसे झड़ते यहां
जैसे झड़ते यहां
ओ हुस्ना…
होता उजाला क्या वैसा ही है
जैसा होता है हिंदुस्तां में…हां
जैसा होता है हिंदुस्तां में…हां
ओ हुस्ना…
वो हीर के रांझों, के नगमें मुझको
हर पल आ आके सताएं
वो बुल्ले शाह की तकरीरों के
झीने झीने से साये
वो ईद की ईदी, लंबी नमाजें, सेवइयों की झालर
वो दीवाली के दिये, संग में बैसाखी के बादल
होली की वो लकड़ी जिसमें
संग संग आंच लगायी
लोहड़ी का वो धुंआ जिसमें
धड़कन है सुलगायी
हर पल आ आके सताएं
वो बुल्ले शाह की तकरीरों के
झीने झीने से साये
वो ईद की ईदी, लंबी नमाजें, सेवइयों की झालर
वो दीवाली के दिये, संग में बैसाखी के बादल
होली की वो लकड़ी जिसमें
संग संग आंच लगायी
लोहड़ी का वो धुंआ जिसमें
धड़कन है सुलगायी
ओ हुस्ना मेरी
ये तो बता दो
लोहड़ी का धुआं क्या अब भी निकलता है
जैसे निकलता था, उस दौर में हां… वहां
ये तो बता दो
लोहड़ी का धुआं क्या अब भी निकलता है
जैसे निकलता था, उस दौर में हां… वहां
ओ हुस्ना
हीरों के रांझों के नगमे
क्या अब भी सुने जाते हैं वहां
क्या अब भी सुने जाते हैं वहां
ओ हुस्ना
रोता है रातों में पाकिस्तान क्या वैसे ही
जैसे हिंदुस्तान
जैसे हिंदुस्तान
ओ हुस्ना
पत्ते क्या झड़ते हैं क्या वैसे ही
जैसे कि झड़ते यहां
होता उजाला क्या वैसे ही
जैसा होता ही हिंदुस्तां में… हां
जैसे कि झड़ते यहां
होता उजाला क्या वैसे ही
जैसा होता ही हिंदुस्तां में… हां
ओ हुस्ना…