Friday, 23 October 2015

चल लौट चलें ..






चमकते शहर में अँधेरा कहाँ है                                                            
रुको देखो दिलो में अँधेरा घना है

दौड़ता  शहर है सबका अपना जहाँ है
रास्ता है सफ़र है मगर जाना कहाँ है

यहाँ चमक है दौड़ है रुकना मना है
मेरे यार ये शहर अपना कहाँ है

हर ऊँची छत पे अमीरी को हँसते देखा है
यहाँ मुफलिसों की जगह कहाँ है

चल लौट चलें कस्वे को अपने
इस शहर में मुहब्बत भी निगेहवां है


            

      ......निशान्त यादव

1 comment: