इस सफ़र के साझी तुम भी हो
यकीं ना आये तो राहगीर लम्हों से पूंछो
तुमने जिंदगी के खाली सफर को भर दिया
मेरी साँसों का आधा हिस्सा तुम ही हो
कई गीत जो तन्हाई को कहते थे
उन्हें मेरे इस सफर से कुढ़न सी है
ये शब्द ! इन्हें कोई फर्क़ नहीं
ये पानी की तरह बिना किसी रंग के
हर रंग और हर आकर में ढल जाने को तत्पर
चलो आओ बैठे कोई प्रेम गीत बनाये
जिसे मैं लिखू और तुम गाओ
इस जिंदगी का अमर प्रेम गीत !
जो मेरे और तुम्हारे सफ़र की दास्ताँ कहे
----- निशान्त यादव
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