Monday, 11 May 2015

निशांत यादव- 'अराफ़ात को बीबीसी से जाना'

बीबीसी की 75 साल पूरे होने पर बीबीसी ने उनसे जुडी कुछ हसीन यादों को भेजने को कहा हमारी भी बीबीसी लन्दन और पिता जी के साथ की यादें थी सो हमने भी भेज दी एक चिट्टी यादो की , और उन्हें पसंद भी आगई , आप सब पढ़िए .. 

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बीबीसी लंदन लगा और सुन, धीरे धीरे मिला.'
‘नहीं मिल रहा है पापा.’
'अरे मूर्ख, रेडियो का बैंड तो बदल.'
और मैं बस अंदाज़े से रेडियो की चूं चूं के बीच में बीबीसी लंदन लगा ही लेता था.
पिताजी रोज 7:20 का समाचार सुनकर फटाक से बोलते थे, जल्दी कर बीबीसी लंदन लगा. उस समय विदेश की बेहतर खबर सुनने का एक मात्र माध्यम बीबीसी लंदन ही था.
जैसे ही बीबीसी लंदन लगता था, पिता जी को खबर बोलने वाले की आवाज़ से पता लग जाता था. वो थोड़ा चिल्लाने के स्वर में कहते- 'रुक यही है.' मैं रेडियो की ट्यूनिंग बटन जस का तस छोड़ देता.
फिर धीरे रेडियो की साइड बदल, आवाज़ और साफ़ होती जाती. उस समय यासिर अराफ़ात और इसराइल की खबरें आया करती थीं. मैने यासिर अराफ़ात को बीबीसी लंदन की खबरों से ही जाना .
हिंदुस्तान की भी खबरें आती थीं लेकिन कुछ चुनिंदा ही. मज़े की बात ये है, मैंने कभी बीबीसी हिंदी लंदन की रेडियो फ्रीक्वेंसी नहीं देखी. बस बचपन में अंदाज़े से मिलाया करता था.
आज जब ये लिखने बैठा हूँ, तो गूगल पर देखा बीबीसी लंदन की फ्रीक्वेंसी 94.9 है.
बीबीसी लंदन को लेकर बचपन की तमाम यादें है जो भुलाये नहीं भूलती. मगर अफ़सोस ये, अब न तो पिता जी बीबीसी लंदन सुनते है और न मैं बीबीसी लंदन ट्यून करता हूँ .

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