Friday, 1 May 2015

जीवन खोने पाने का खेल ही है !



जीवन खोने पाने का खेल ही है !
कुछ पाने की चाह लिए !
फिर उसके खो जाने का बोझ ही है !
कुछ पाने की खोज में भटकना !
फिर मिल जाने पर उसे छोड़ देना !
ये जीवन की कभी न खत्म होने वाली दौड़ ही है !

मानव हूँ तो चिंतन भी है , इसी लिए भटकन भी है !
भटकन से लौटना  !
फिर खुद को इस दौड़ में  झोंक देना  !
ये कहानी हम सब की है !

मानव हूँ तो इक्छा भी है !
अनिक्छा से इक्छा की पूर्ति करना !
फिर इक्छा का अनिक्छा में वदल जाना !
ये सब विस्थापन के शून्य जैसा है !
खोने - पाने , इक्छा पूर्ति की दौड़ में हाँफते हुए दौड़ना !
फिर दौड़ते- दौड़ते दम तोड़ देना !
ये भी विस्थापन का शून्य ही है !
जीवन का अंत शून्य है !


---निशान्त यादव

2 comments:

  1. A Nice String of feelings and bunch of though full lines. I must say, Kudos.

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