Monday, 4 May 2015

झरने का पानी /महात्मा बुद्द


आज बुद्द पूर्णिमा है जो सरकारी महकमों में है आज वो छुट्टी के मौज पर है और हम प्राइवेट वाले खुद को काम में धुन रहे है बिडम्वना ये है की छुट्टी में मौज पर जाना हो या काम में धूनी रमाना हो दोनों ही महात्मा बुद्द के दर्शन के विपरीत है छुट्टी के मौज में आराम तलवी है और काम में घुसे रहने में और अधिक पाने की चाह है जब थोड़ी सी गर्दन उठाने का मौका मिला तो देखा सोशल मीडिया महात्मा बुद्द पूर्णिमा की बधाई से भरा पड़ा है सब एक दूसरे को बुद्द पूर्णिमा की बधाई देने में जुटे है न तो बधाई देने और न ही बधाई लेने वाला कभी बुद्ध को जी पाया है तो फिर इन बधाईओं का क्या मतलब ?  मैं आज इसी सवाल में उलझा हुआ हूँ बुद्ध को पढ़ना और बुद्ध को जीना या फिर बुद्ध पूर्णिमा की बधाई देना ये तीनो एक दूसरे से  भिन्न है मैं खुद की बात करू तो  बुद्ध को सिर्फ कोर्स की किताबो में ही पढ़ पाया हूँ आज हर जगह महात्मा बुद्ध की जयंती पर बधाईओं को देखकर फिर कुछ पड़ने की तलाश में ये कहानी मुझे मिल गई , आप सब भी पढ़िए और कोशिश कीजिये जीवन में कहीं न कहीं तो महात्मा बुद्ध को या उनके संदेशो पर चलने की ...

झरने का पानी :--

महात्मा बुद्ध एक बार अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं जा रहे थे। वन में काफी चलने के बाद दोपहर में एक वृक्ष तले विश्राम को रुके और उन्हें प्यास लगी।

आनंद पास स्थित पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया, लेकिन झरने से अभी-अभी कुछ पशु दौड़कर निकले थे जिससे उसका पानी गंदा हो गया था। पशुओं की भाग-दौड़ से झरने के पानी में कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते बाहर उभरकर आ गए थे। गंदा पानी देख आनंद पानी बिना लिए लौट आया।

उसने बुद्ध से कहा कि झरने का पानी निर्मल नहीं है, मैं पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूं। लेकिन नदी बहुत दूर थी तो बुद्ध ने उसे झरने का पानी ही लाने को वापस लौटा दिया।

आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आया। पानी अब भी गंदा था पर बुद्ध ने उसे इस बार भी वापस लौटा दिया। कुछ देर बार जब तीसरी बार आनंद झरने पर पहुंचा, तो देखकर चकित हो गया। झरना अब बिलकुल निर्मल और शांत हो गया था, कीचड़ बैठ गया था और जल बिलकुल निर्मल हो गया था।

महात्मा बुद्ध ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की भी है। जीवन की दौड़-भाग मन को भी विक्षुब्ध कर देती है, मथ देती है। पर कोई यदि शांति और धीरज से उसे बैठा देखता है रहे, तो कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाता है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है।


----निशान्त यादव  

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