Tuesday, 14 April 2015

चराग-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसीं रात थी




चराग-ओ-आफताब गुम, बड़ी हसीं रात थी                                  
शबाब की नकाब गुम, बड़ी हसीं रात थी
मुझे पिला रहे थे वो की खुद ही शम्मा बुझ गयी
गिलास गुम शराब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लिखा हुआ था जिस किताब में, की इश्क तो हराम है
हुई वही किताब गुम, बड़ी हसीं रात थी
लबो से लब जो मिल गए, लबो से लब जो सिल गए
सवाल गूम जवाब गुम, बड़ी हसीं रात थी

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