क्या कभी आईने में अपने आप को
देखा है खुद
को , चेहरे को नहीं !
क्या आइना, तुम्हारे अंतर्मन को दिखा रहा है नहीं शायद ! आइना कृत्रिमता को दिखाता है
देखो तुम्हारे चेहरे पर भाव है और ये भाव ही तुम्हारे अंतर्मन के सूचक है
तुम्हारा चेहरा भाव शुन्य नहीं है तुम्हारे अंदर बदलाव है ये मै नहीं ,ये आईना कहता है इसने तुम्हारे चेहरे को पढ़ लिया है और तुम हो की
मुद्दतो से खुद को खुद से मिलने ही नहीं देते , तुम्हारे
प्रतिमान वदल गये है शायद इसी लिए तुम वदल गये हो या फिर इस भागती
घुड़दोड़ में तुमने खुद को शामिल कर अपने आप को पीछे धकेल दिया है या फिर समाज
की बेड़ियों और परम्पराओं ने तुम्हे मजवूर किया है लेकिन जो भी हो तुम वदल गए
हो , तुमने जाते हुए कभी न भूलने का वादा किया था लेकिन मैं आज
तक तुम्हारे वादे पर बैठा हूँ हर रोज अपने फ़ोन के इनबॉक्स को टटोलता
रहता हूँ लेकिन हर बार मायूसी ही मिलती वहां !
मैं जानता हूँ जिंदगी दो नावों
पर नहीं चलती है लेकिन जिस नाव के खेवएं कभी तुम खुद रहे हो और फिर उस नाव को बीच
मजधार में छोड़कर दूसरी नाव पर चले जाना !
फिर लौट कर भी न देखना की उस
नाव में सवार का क्या हुआ होगा !
मै गलत था शायद तुम वो
नहीं जिसे मैं जानता हूँ या फिर जानता था
क्या तुम्हे वो कैडबरी के लड्डू याद है जिसका तुम इंतजार किया
करती थी कि कब मै लाऊँ और हम दोनों एक -एक बाँट कर खाए , बताओ न तुम मेरा इंतजार करती थी या फिर उस लड्डू का , मुझे पता है इस सवाल पर तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट जरुरु तैरी होगी , आईने में देखो तो जरा.. ये बता देगा कि ये
तुम्हारी मुस्कुराहट झूटी है यार फिर सच में तुम्हे उस लम्हे कि याद आगई है देखो
आईना भी सोच में पड़ गया है इसका मौन मुझे सब कुछ बता रहा है
मैं भी कितना पागल था समझ ही
नहीं पाया ,
काश ये आईना मेरे पास उस वक्त
भी होता जिमसें मै तुम्हारा और अपना सच देख पाता...
कभी आओ तो ये बोझ उतरे ! ....
निशान्त यादव
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