Monday, 23 February 2015

दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दोनों जहान तेरी मोहब्बत मे हार के
वो जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के 

वीराँ है मयकदः[1] ख़ुमो-सागर[2] उदास हैं
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के 

इक फ़ुर्सते-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखें हैं हमने हौसले परवरदिगार[3] के 

दुनिया ने तेरी याद से बेगानः कर दिया
तुम से भी दिलफ़रेब[4] हैं ग़म रोज़गार के 

भूले से मुस्कुरा तो दिये थे वो आज ’फ़ैज़’
मत पूछ वलवले दिले-नाकर्दःकार[5] के

शब्दार्थ:
1 शराबघर
2 सुराही और जाम
3 ईश्वर, ख़ुदा
4 दिल को धोखा देने वाले
5 अनुभवहीन हृदय

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