संघर्ष पथ पर चल दिया
फिर सोच और विचार क्या
जो भी मिले स्वीकार है
यह जीत क्या वह हार क्या
संसार है सागर अगर
इस पार क्या उस पार क्या
पानी जहाँ गहरा वहीँ
गोता लगाना है मुझे
तुम तीर को तरसा करो
मेरे लिए मझधार क्या
फिर सोच और विचार क्या
जो भी मिले स्वीकार है
यह जीत क्या वह हार क्या
संसार है सागर अगर
इस पार क्या उस पार क्या
पानी जहाँ गहरा वहीँ
गोता लगाना है मुझे
तुम तीर को तरसा करो
मेरे लिए मझधार क्या
आदरणीय Ashok Chakradhar की वाल से उनके पिता की ये कविता
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