Thursday, 22 May 2014

अनगिनत तारो में ढूढ़ता हूँ तुझे

अनगिनत तारो में ढूढ़ता हूँ तुझे 
टूटते तारे से पूछता हूँ तुझे 

अगर तू है तो दिख तो सही 
देख तेरे बिन कितना अकेला हूँ में 

पथराई आँखे तेरा अक्स मांगती हैं
झूट ही सही तेरा भरम मांगती है

में मजवूर हूँ मेरे पास सिर्फ आंसू हैं
मगर ये इनसे भी इनकार चाहती हैं

अगर तू है तो चमक तो सही
ये आँखे तेरा सबब मांगती हैं

(निशांत यादव ) 











2 comments:

  1. बहुत खूब। अति सुन्दर भाव हैं। :)

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  2. खूबसूरत पेशकश

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