कुछ अलग-थलग सी है ये पक्तियां | ध्यान से देखोगे तो जुडी नजर आएगी | जोड़ी इसलिए नहीं क्यों कि कुछ मित्रो की शिकायत है कि रचनाओ में काव्यात्मकता की कमी है अब काव्यात्मकता के चक्कर में अहसास लिखना कैसे छोड़ दूँ | नया प्रयोग किया है अच्छा लगे तो बताइयेगा _______________________________________________
रिश्तो के खेत में मुह्हबत की फसल उगाई
मगर कम्बक्त ये नफरत बथुए की तरह उग आई
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मगर कम्बक्त ये नफरत बथुए की तरह उग आई
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में मुह्हबत बाटता हूँ तुम नफरत बांटो
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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में फूल बोता हूँ तुम कांटे बोओ !
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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तुम मुझ पर कीचड़ उछालो में तुम पर फूल उछलता हूँ
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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नफरत कौन याद रखता है मुह्हबत बांटो
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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....निशांत यादव .....
नफरत कौन याद रखता है मुह्हबत बांटो
फिर देखो इस जहाँ को हम कहाँ लिए जाते हैं
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....निशांत यादव .....
तुम कविता लिखो, हम पढ़े जाते है
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