उस दिन नीला आसमान , भयानक लाल-काले बादलों से भरा हुआ था , लाल रंग से आसमां को ढके बादल , उड़ते पंछियों की अकुलाहट ,दूर कहीं से आती हुई हवा की सायं सायं और श्याम इस लम्हे को बाहें फैलाये आसमां की तरफ देखता ! इस लम्हे को समेट लेना चाहता था, उसे मां की कही वो बात याद आयी कि जब आसमां ग़ुलाबी हो तो समझो कि बरसात आने को है ये उड़ते पंछी उसके आने की तश्दीक करते हैं
हवा और तेज हुई हवा के झोकें जैसे जमीं से उड़ा ले जाना चाहते थे, और वो..... आँखे बंद किये बचपन से अबतक की सब बरसातों के लम्हो को एक एक कर फिर से जी रहा था,
तभी आसमां से एक बड़ी मोटी बूँद टप से चेहरे पर गिरी , फ़ोन की घंटी बजी उधर से आवाज आई छोटे माँ ... नहीं रही ..
जिस्म पत्थर हो गया ..काली घनघोर घटा , हवा के तेज झोंकें श्याम का सबकुछ बहा ले गए
न उसकी आवाज थी न आँसू थे थी तो सिर्फ कानों में गूँजती आवाज ... बेटा अँधेरा होने को है तू घर कब आएगा ....
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