Saturday, 15 August 2015

69वां स्वतंत्रतादिवस अपनी यादों के साथ

14 अगस्त 1947 की अर्धरात्रि में जब भारत के आजाद होने की घोषणा की गई तब के जनमानस के ह्रदय में उठने वाले भावो का आज अंदाज लगाना मुश्किल है क्योकि अब हम आजाद है । हमने उस लड़ाई को सिर्फ किताबो में पढ़ा है इस देश के गुलाम होने और आजाद होने के लड़ाई में बहुत से क्रांतिवीर शहीद हुए।  जो कितावो में दर्ज है उनके अलावा भी तमाम लोग रहे होंगे जो इस देश के लिए शहीद हो गए
भारत के इतिहास में जब आप जायेंगे तो पाएंगे की जब जब ये देश विपत्तियो और समस्याओं से घिरा है तब तब इस देश के नागरिक किसी को आदर्श मानकर उस विपत्ति और समस्या के खिलाफ खड़े हुए है हमने पुराने समय की तमाम कुरीतियों से निजात पायी है हमने अपने सामाजिक विकारो का खुद इलाज किया । एक समय था जब देश जमींदारी और जातिप्रथा के विकारो से युक्त था । आज देश में जातिप्रथा पूर्ण रूप से समाप्त तो नहीं लेकिन काफी हद तक कम हुई है देश का युवा सिर्फ काम और विकास चाहता है वो चाहता है की देश आगे बढे हम सब आगे बढे लेकिन इन सब के बाबजूद आज भी हम कन्या भ्रूण हत्या , स्त्री हिंसा, जैसी समस्याओं से घिरे हुए है कल के सपनो का भारत स्त्री के बिना नहीं बनेगा । जरा सोचिये देश की आधी आबादी स्त्रिओं की है जिसकी प्रतिभा घरो की चारदीवारी में दब कर मर रही है अगर ये प्रतिभा देश के कंधे से कन्धा मिलाकर चले तब इस देश आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है समय बदल गया है दोस्तों , आप 21वीं सदी में जी रहे है कब तक कुँए के मेंडक सा व्यव्हार करते रहेंगे
अपनी बच्ची को जन्म दीजिये । उसे वेहतर जीवन दीजिये और फिर देखिये  आज की  ये छोटी छोटी लड़कियां इस देश को कहाँ से कहाँ ले जायेगी
इन अब सामाजिक विकारो के इतर एक सबसे महत्वपूर्ण विन्दु है कि क्या हम अपने देश के जिम्मेवार नागरिक है क्या हमारा व्यवहार और आचरण एक जिम्मेवार नागरिक का है मैं कहूँगा नहीं हम अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे है अगर कर रहे है होते तब इस देश में भ्रष्टाचार , दंगे , सामाजिक शोषण जैसी समस्यायें नहीं होती । इसलिए सबसे पहले एक ईमानदार नागरिक बनिये उसके बाद पिता पुत्र भाई या बहन बनिये

अब कुछ बचपन की यादें 15 अगस्त के साथ

बचपन की 15 अगस्त से जुडी तमाम यादें इस दिन वापिस आकर मुझे घेर लेती है कारण है अब 15 अगस्त के दिन वो सब नहीं होता जो स्कूल के दिनों में होता था अब तो इस दिन छुट्टी और होती है  छुट्टी से इस दिन के होने एहसास खत्म हो जाता है बचपन में  इस दिन का इंतजार बड़ी बेसब्री से रहता था माँ सुबह नहला धुला कर नयी यूनिफार्म पहना आँखों में  काजल लगा कर भेजती थी और हम दिलो  में जोश और उत्साह लिए स्कूल दौड़ते निकल जाते थे मै अक्सर झांकियो में चंद्रशेखर आजाद ही बनता था जब झांकी हमारे घर के सामने से निकलती थी तो छाती और चोंडी हो जाया करती थी ये एहसास शब्दों में बयां नहीं कर सकता । इन सब के बाद चार लड्डू मिलते थे इन लड्डुओं को हम कभी रास्ते में नहीं खाते थे घर लाकर माँ के साथ खाते थे मै सच कहूँ तो बूँदी के उस लड्डू का स्वाद अन्य किसी  दिन के लड्डुओं से कई गुना मीठा होता था शायद यही शक्ति है आजादी के इस दिन की वर्ना बूंदी का लड्डू तो हम अकसर खाते ही है
दोपहर को पिता जी कालेज से 1 - 2 किलो लड्डू अलग से लाया करते थे और हमारी लपलपाती जीभ को उनका इंतजार रहता था  । जब बड़ा हुआ तो कक्षा 6 में पिता जी के कालेज में ही पहुँच गया यहाँ हर बार कुछ न कुछ कार्यक्रम अवश्य होते थे मेरा  दोस्त अयाज  जिसकी आवाज बड़ी अच्छी थी काली शेरवानी चूड़ीदार पायजामा और सर पर काली टोपी पहने अकसर इकवाल बनता था और गाता था  सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है  मुझे कई बार  कालेज में लड्डू के दोने लगाने और बाँटने वाली टीम में रखा गया उस समय ये भी बड़े गर्ब का काम होता था और हमें सब बच्चों से ज्यादा 8 लड्डू मिला करते थे । बचपन बीता बड़े हुए स्कूल से कालेज गए कालेज से डिग्री कालेज और फिर विश्वविद्यालय अब  ये सफ़र  एक जॉब पर आकर थमा हुआ है लेकिन सच कहूँ न जाने क्यों अब इस दिन बचपन जैसी वो गुदगुदाहट और इंतजार नहीं रहता ये दिन भी हर बीतते दिन की तरह निकल जाता है जब कभी इस दिन घर पर होता हूँ तो  बच्चों में बही पुराना उत्साह और कोतूहल ,  जो कभी हमने जिया , देख कर खुश हो लेता हूँ जिंदगी यही है दोस्तों कभी हँसी कभी उदासी
इस लिए जोर कहिये अब हम आजाद है ये देश आजाद भारत माता की जय !
ये 69वां स्वतंत्रतादिवस आप सब  को दिल से मुवारक
ध्यान रखिये जिम्मेदार नागरिक बनिये बाकि फिर तो देश हम सब आगे ही बढ़ेंगे !
जय हिन्द !

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