रात कुछ बीते हुए लम्हे
पलकों के साथ बैठे रहे है
ये लम्हे जब भी पलकों से रूबरू हुए
एक नमी पलकों की कोरों पर छोड़ते गए
ये नमी ख़ुशी और दर्द का संगम है
कुछ लम्हे अठाहस् दे गए कुछ उदासी भी
आँखे सिर्फ लम्हों को ताकती रहीं
बेबस सी कुछ कर न सकी
न इन्हें कैद कर सकी न जाने को कह सकी
दरअसल ये दोष फिजाओं का है
आज फिजाओं में ठंडक है
लम्हे भी इन फिजाओं के कैदी हैं
मन इन्हें कैद करने को लपकता है
मेरे वश में न तो मेरा मन है
ना ये आवारा फिजायें...
पलकों के साथ बैठे रहे है
ये लम्हे जब भी पलकों से रूबरू हुए
एक नमी पलकों की कोरों पर छोड़ते गए
ये नमी ख़ुशी और दर्द का संगम है
कुछ लम्हे अठाहस् दे गए कुछ उदासी भी
आँखे सिर्फ लम्हों को ताकती रहीं
बेबस सी कुछ कर न सकी
न इन्हें कैद कर सकी न जाने को कह सकी
दरअसल ये दोष फिजाओं का है
आज फिजाओं में ठंडक है
लम्हे भी इन फिजाओं के कैदी हैं
मन इन्हें कैद करने को लपकता है
मेरे वश में न तो मेरा मन है
ना ये आवारा फिजायें...
.....निशान्त यादव
ये फिजायें तो कैद कर के बैठी हैं यादें ... नमी तो आप ही आ जाती है ...
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