Saturday, 23 May 2015

कुछ यूँ ही ...

वो अब तक गुमशुदा है 
मुझे यकीन तो नहीं 
वो अब शायद दामन छुड़ाना चाहता है 
जिस डोर से बंधे थे हम दोनों 
वो अब शायद उसे समेटना चाहता है 
मेरी मुसीवत ये है ये डोर सिर्फ 
मुझसे ही बंधना चाहती है 


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ये रात क़यामत की लगती है 
कटती है तो कट जाने दे 
कल फिर आएगी सुबह नयी 
तू थोडा इंतजार तो कर


--------निशान्त यादव   

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