Tuesday, 14 April 2015

वो बचपन के संबिधान वाले बाबा / भारत रत्न डा. भीम राव अम्बेडकर



बचपन में जब छोटा था तब हम अक्सर त्योहारो पर , गर्मिओं की छुट्टीओं में अपने गावं पिता जी के साथ जाया करते थे , गावं के  पहले ही छोटे से कस्वे नुमा गावं में एक मूर्ति नाक की सीध में हाथ और दूसरे हाथ में किताब लिए खड़ी रहती है , है इसलिए कहा (अभी कुछ अंश अभी बाकि है) . बचपन बड़ा जिज्ञासु होता है और मै भुल्कड्ड और जिज्ञासु दोनों था | मैं हर वार पिता जी यही सवाल करता था, पापा  ये कौन है ?
और पिता जी हरवार कहा करते थे ये बाबा अम्बेडकर है , और ये ऊँगली क्यों सीधी किये रहते है ? बेटा ये बाबा कहते है सीधे चलो हमेशा सामने देख कर , और ये क्या किताब क्यों लिए रहते है बेटा ये हमारा संबिधान है और फिर से मेरा सवाल संबिधान क्या होता है ? जब बड़े होजाओ तब पढ़ लेना , क्या ये सब के बाबा है ?  आपके भी ? पिता जी कहते हाँ !  ..और इतने हमारा गावं आ जाया करता था फिर जब कभी साथ में  माँ होती थी तब मै पहले से माँ से कहता था मम्मी अब बाबा की मूर्ति आने वाली है और जब आती तब कहता देखो बो रहे संबिधान वाले  बाबा और माँ- पिता जी मेरी मासूमियत पर हँस जाया करते थे वक्त बीता बचपन से जवानी मे कदम रखा और हमने संबिधान वाले बाबा को जातिओं में बंटते देखा , देश के कथित नेताओं ने उन्हें अपने अपने हिसाब से इस्तेमाल किया , जनरल नॉलेज के सवालो मे हमने संबिधान के हर प्रश्न का उत्तर अम्बेडकर ही दिया .. अपनी बचपन की दृष्टि से मेने बाबा अम्बेडकर की उसी छवि की जिन्दा रखा , हम आज उनकी जयंती मना रहें है लेकिन हम बाबा को हर दिन जीते है आप नेता उन्हें कही भी बाँट दो लेकिन बो हमारे जेहन मे संबिधान बाले बाबा ही रहेंगे , और कोशिश करेंगे की अपने आने वाली पीढ़ी को भी ये बात देकर जाएँ नाकि ये की वो किस जाति के थे , धन्य हो बाबा साहेव अम्बेडकर जो हमे अधिकार दिए एक मजवूत लोकतंत्र रहने के , बचपन की यादों और जवानी के सवालो से बनी कुछ पक्तिया ..

बचपन के संबिधान बाले बाबा !
आप यूँ ही जिन्दा हो बैसे के बैसे ही !
कुफ्र ये की जवानी आपको बंटते देखा !
किन्तु आप जिन्दा है जेहन मे बैसे के बैसे ही !
बही संबिधान बाले बाबा !
आपकी ऊँगली का इशारा !
बखूबी समझा है हमने !
देखो कहाँ ले आये हम !
आपकी उस किताब को !

आपकी पीढ़ी का नव अंकुर ..
..निशान्त यादव

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