Tuesday, 21 April 2015

हमेशा देर कर देता हूँ मैं / मुनीर नियाज़ी

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

ज़रूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी
यार का धाढ़स बंधाना हो
बहुत पुराने  रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

बदलते मौसमों की सैर में
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

किसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

--मुनीर नियाज़ी

2 comments:

  1. मुनीर नियाज़ी साहब की ये रचना उनकी आवाज़ में मैनें सुनी है।क्या अंदाज़े-बयाँ है! क्या बेहतरीन आवाज़ है! रचना प्रस्तुत करनें के लिये शुक्रिया निशान्त जी।

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  2. मुनीर नियाज़ी साहब की ये रचना उनकी आवाज़ में मैनें सुनी है।क्या अंदाज़े-बयाँ है! क्या बेहतरीन आवाज़ है! रचना प्रस्तुत करनें के लिये शुक्रिया निशान्त जी।

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